Friday, July 22, 2016

उपदेशक कुत्ता

खलील जिब्रान ने एक छोटी सी कहानी लिखी है वहां एक कुत्ता था। उसे देखकर कोई भी व्यक्ति उसे एक महान क्रांतिकारी कह सकता था। वह शहर भर के कुत्तों को हमेशा यही शिक्षा दिया करता था— ‘‘ केवल व्यर्थ ही भौंकते रहने के कारण ही हम लोग विकसित नहीं हो पा रहे हैं। तुम लोग अपनी ऊर्जा भौंकने में व्यर्थ बरबाद कर रहे हो।‘‘एक डाकिया गुजरता है और अचानक एक पुलिस वाला या एक संन्यासी सामने से निकला नहीं कि कुत्ते किसी भी तरह की वर्दी के विरुद्ध हैं, किसी भी व्यक्ति के ऊपर से नीचे तक एक ही तरह के कपड़े हों, और चूंकि वे क्रांतिकारी हैं, फौरन वे भौंकना शुरू कर देते हैं। वह नेता सभी से कहा करता था— ‘‘बंद करो भौंकना। अपनी ऊर्जा व्यर्थ नष्ट मत करो, क्योंकि यही ऊर्जा किसी उपयोगी सृजनात्मक कार्य में लगाई जा सकती है। कुत्ते पूरी दुनिया पर शासन कर सकते हैं, लेकिन तुम लोग व्यर्थ ही अकारण अपनी ऊर्जा भौंकने में नष्ट कर रहे हो। इस आदत को छोड़ना होगा। केवल यही तुम्हारा पाप और अपराध है, यही मूल पाप है। ‘‘सभी कुत्तों को यह सुनकर हमेशा यह अहसास होता था कि वह बिलकुल ठीक और तर्कपूर्ण बात कह रहा था ‘तुम लोग आखिर क्यों भौंकते चले जाते हो? और ऊर्जा भी व्यर्थ नष्ट होती है, कोई भी कुत्ता भौंक— भौंक कर थक जाता है। दूसरी ही सुबह वह फिर भौंकना शुरू कर देता है और फिर रात होने पर ही वह थकता है। आखिर इस सभी की क्या तुक है?वे सभी अपने नेता की कही बात को समझ सकते थे, लेकिन वे यह भी जानते थे कि वे लोग बस कुत्ते भर हैं, बेचारे विवश कुत्ते। आदर्श बहुत महान था और उनका नेता वास्तव में एक ज्ञानी था, क्योंकि वह जिस बात का उपदेश दे रहा था, वह वैसा कर भी रहा था। वह कभी भी भौंकता नहीं था। तुम उसका चरित्र भली भांति देख सकते हो, उसने जिस बात का उपदेश दिया, स्वयं उसी के अनुरूप चला भी।लेकिन धीमे— धीमे निरंतर उससे उपदेश सुनते सुनते वे लोग आखिर थक गए। एक दिन उन्होंने तय किया—वह उनके नेता का जन्मदिवस था और उन्होंने यह निर्णय लिया कि कम से कम आज की रात, अपने नेता की बात का सम्मान रखते हुए वे रात भर भौंकेगे नहीं और यही उनका नेता के लिए उपहार होगा। इसकी अपेक्षा वे किसी और बात से इतने अधिक खुश न हो सकते थे। उस रात सभी कुत्तों ने भौंकना बंद कर दिया। यह बहुत कठिन और श्रमपूर्ण था। यह ठीक उसी तरह था, जैसे तुम ध्यान कर रहे हो तो विचारों को रोकना कितना कठिन हो जाता है। उन सभी के लिए वैसी ही समस्या थी वह। उन्होंने भौंकना बंद कर दिया, जब कि वे हमेशा भौंका ही करते थे। और वे लोग कोई महान संत नहीं थे, बल्कि मामूली कुत्ते थे। लेकिन उन्होंने कठिन प्रयास किया। यह बहुत श्रमपूर्ण था। वे सभी आंखें बंद किए अपनी— अपनी जगह छिपे हुए थे। आंखें बंद कर दांत भींचे हुए वे खामोश बैठे थे, न वे कुछ देख सकते थे और न कुछ सुन सकते थे। वजह एक महान अनुशासन का पालन कर रहे थे।उनका नेता पूरे शहर में चारों ओर घूमा। वह बहुत उलझन में पड़ गया। वह उपदेश किन्हें दे? अब शिक्षा किन्हें दे? आखिर यह हुआ क्या—पूरी तरह शांति व्यास है चारों ओर। तभी अचानक जब आधी रात गुजर चुकी थी, वह इतना अधिक उत्तेजित हो उठा, क्योंकि उसने कभी सोचा तक न था कि सभी कुत्ते उसकी बात सुनेंगे। वह भली भांति जानता था कि वे लोग कभी उसकी बात सुनेंगे ही नहीं क्योंकि कुत्तों के लिए भौंकना एक स्वाभाविक बात थी। उसकी मांग अप्राकृतिक और अस्वाभाविक थी, लेकिन कुत्तों ने भौंकना बंद कर दिया। उसकी पूरी नेतागीरी दांव पर लगी हुई थी। आखिर कल से वह करेगा क्या? क्योंकि वह केवल उपदेश और शिक्षा देना जानता था। उसकी पूरी शासन व्यवस्था दांव पर लगी हुई थी। और तब पहली बार उसने महसूस किया, क्योंकि वह निरंतर सुबह से लेकर रात तक उन्हें शिक्षा और उपदेश ही देता रहता था, इसी वजह से उसे कभी भी भौंकने की जरूरत महसूस नहीं होती थी। उसकी ऊर्जा उसी में इतनी अधिक लगी हुई थी, कि वह एक तरह का भौंकना ही था।लेकिन उस रात कहीं भी, कोई भी गलती करता मिला ही नहीं। और उस उपदेशक कुत्ते में भौंकने की तीव्र लालसा शुरू हो गयी।एक कुत्ता आखिर एक कुत्ता ही तो होता है। तब वह एक अंधेरी गली में गया और उसने भौंकना शुरू कर दिया। जब इसे दूसरे कुत्तों ने सुना तो सोचा कि किसी एक कुत्ते ने समझौते को तोड़ दिया है, तब उन्होंने कहा— ‘‘फिर हमीं लोग आखिर यह दुख क्यों सहे?‘‘ पूरे शहर ने ही जैसे भौंकना शुरू कर दिया। तभी उस नेता ने वापस लौटकर कहा— ‘‘अरे मूर्खों! तुम लोग भौंकना कब बंद करोगे? क्योंकि तुम लोगों के भौंकने से ही हम लोग केवल कुत्ते ही बनकर रह गए हैं, अन्यथा पूरे संसार पर हमारा अधिकार होता।‘‘

आनंद योग–(दि बिलिव्ड)–(प्रवचन–08)