Saturday, May 6, 2017

जिन्दगी,,

तूने तो रुला के रख दिया ए-जिन्दगी,,
जा कर पूछ मेरी माँ से, कितना लाड़ला था मैं........

हर बार थाम लेंगे गिरो चाहे जितनी भी बार तुम,,
इल्तिजा बस इतनी ही है मेरी नज़रों से न गिरना तुम........

खड़ा हूँ इस तरह ख़ामोश, इस तरह तन्हा,,
कि जैसे शहर का अंतिम मकान होता है........

तुम्हारे वास्ते बारिश ख़ुशी की बात सही,,
हमारी छत के लिए इम्तहान होता है ........

हसरत ये के थाम लूँ मैं उनका हाथ ज़ोर से,,
मगर कम्बख्त उनकी चूड़ियों पे तरस आता है.......

प्यार में मेरे सब्र का इम्तेहान तो देखो,,
वो मेरी ही बाँहों में सो गए किसी और के लिए रोते रोते........