Thursday, January 16, 2020

35 की तरफ़ बढ़ता आदमी...

25-35 वाली उमर न समझदारी थोपने लगती है। आदमी घर का मोह छोड़ चुका होता है। छुट्टी पर भी जाए तो दिमाग में लौटकर रूटीन पकड़ने के ख्याल चलते रहते हैं। अब साल-डेढ़ साल घर न जाने पर भी फ़र्क़ पड़ना बंद हो गया है। थोड़ा अकेलापन चाहता है। किसी रोज़ घर पर पड़े-पड़े बिता दो, कोई याद तक न करे। छोटे बच्चे के साथ बाप को देखकर घबरा जाता है। ये झेलता कैसे होगा?

काफी बदल रहा होता है। शर्ट एक साइज बड़ी लेता है, ज़्यादा चलाने को नहीं, तोंद छुपाने को। उबाऊ मीटिंग्स से डील करना सीख जाता है, उसे पता होता है, यहां कई बड़ी बातें कही जाएंगी, जिसका 5% पूरा होना संभव होगा और यहां 'चाटो मत' कहने से बच गए तो साल के अंत में एकाध परसेंट बेहतर हो जाएगा। 

चकमक दफ्तरों में मुलम्मा चढ़े चेहरे देख फ़र्क़ पड़ना बंद हो जाता है। सबकी अपनी लड़ाई है, उस बीच जो जैसा दिख जाना चाहे, दिखने दो न। नॉस्टैल्जिक कम होता है, नॉस्टैल्जिक करने में चीजें काम नहीं आतीं, धूप की बदली दिशा, गंध, कान के ऊपर से निकली गर्म हवा या बस ये याद आ जाना कि अब तो कॉलेज से निकले भी 7 साल हो गए, ये सब नॉस्टैल्जिया भरता है।

दर्द की आदत पड़ गई है। आख़िरी बार कब सिर में दर्द नहीं था? अब तो गद्दे भी बेहतर खरीद लिए पीठ का दर्द क्यों नहीं जाता? दर्द और भी हैं। ख़बर आती है, रेप की, बमों के फटने की, मूर्खताओं की, ये सब चिढ़ भरते हैं, सिर में दर्द भरते हैं। सबसे ज़्यादा दर्द चिल्ला न पाने का होता है।

अब रजाई छोड़ने में दिक्कत नहीं होती, नौकरी छोड़ने का जी नहीं करता। पता रहता है, हज़ारों हैं जो इस काम को तरस रहे हैं, समझ ये भी आता है कि काम दुश्मन नहीं है। 
काम में खर्च होने में दिक्कत नहीं है। वक़्त बेचने में दिक्कत नहीं है, अगर 20% भी मन की कर लो तो नदियां बहती हैं, पर उनके किनारे छुट्टी बिताई जा सकती है।
 
गुस्सा ग़लत जगह निकलता है। महीनों में कभी-कभी आता है। अब अकरास होता है, चिढ़ होती है, क्षोभ सबसे ज़्यादा होता है। ऑटोवाला दस-बीस ज़्यादा नहीं ले पाता, आदमी ऐप से चलता है, ऑनलाइन पेमेंट करता है, 67 रुपए किराए पर 70 रुपये देने से भी बच जाता है। 

हर कोई किस्सा ले के चलता है, अपने हिस्से का। हर कोई अपनी लड़ाई लड़ रहा है, अलग तरीके से। कभी सामने पड़ें और मुंह उतरा दिखे तो एक स्माइल दे दीजिए। कभी बेवजह किसी से बात भी कर लीजिए, कभी सब देखकर भी किनारा कर लीजिए। कोई पिच्चर नहीं चल रही है। 35 की तरफ जाते आदमी से कई बातें कह सकते हैं, बस फैमिली बीच में न लाइए, फिर बांह चढ़ते देर नहीं लगती।