Friday, August 29, 2025

धुंधली सी है एक तस्वीर


 

धुंधली सी है एक तस्वीर, रोज मैं सजाता हूँ।
जिंदगी में मिला बहुत कुछ, सोच यह इतराता हूँ।

अपनो से मिली बेरुखी तो कभी गैरो का प्यार बरसा है,
मिली अपनों की भीड़ तो कभी मन भीड़ में अपनों को तरसा है।
पाषाण जीवन प्यार से दरिया बन बह जाता हूँ…
जिंदगी में मिला बहुत कुछ, सोच यह इतराता हूँ…

मिला हैं जीवन और जीवन में मिला हर रंग,
स्नेह, हार, उत्साह, सफ़लता और मिली उमंग।
हारे हुए मन से कभी कभी उभर ना पाता हूँ…
जिंदगी में मिला बहुत कुछ, सोच यह इतराता हूँ…

जीवन है एक युद्ध, हैं अपने ही विरुद्ध,
जीवन के तपोवन से निकले बहे अविरल अविरुद्ध।
हार के आगे हैं जीवन यह सोच मैं बढ़ता जाता हूँ…
जिंदगी में मिला बहुत कुछ, सोच यह इतराता हूँ…

धुंधली सी है एक तस्वीर, रोज मैं सजाता हूँ।
जिंदगी में मिला बहुत कुछ, सोच यह इतराता हूँ।