Friday, July 22, 2016

उपदेशक कुत्ता

खलील जिब्रान ने एक छोटी सी कहानी लिखी है वहां एक कुत्ता था। उसे देखकर कोई भी व्यक्ति उसे एक महान क्रांतिकारी कह सकता था। वह शहर भर के कुत्तों को हमेशा यही शिक्षा दिया करता था— ‘‘ केवल व्यर्थ ही भौंकते रहने के कारण ही हम लोग विकसित नहीं हो पा रहे हैं। तुम लोग अपनी ऊर्जा भौंकने में व्यर्थ बरबाद कर रहे हो।‘‘एक डाकिया गुजरता है और अचानक एक पुलिस वाला या एक संन्यासी सामने से निकला नहीं कि कुत्ते किसी भी तरह की वर्दी के विरुद्ध हैं, किसी भी व्यक्ति के ऊपर से नीचे तक एक ही तरह के कपड़े हों, और चूंकि वे क्रांतिकारी हैं, फौरन वे भौंकना शुरू कर देते हैं। वह नेता सभी से कहा करता था— ‘‘बंद करो भौंकना। अपनी ऊर्जा व्यर्थ नष्ट मत करो, क्योंकि यही ऊर्जा किसी उपयोगी सृजनात्मक कार्य में लगाई जा सकती है। कुत्ते पूरी दुनिया पर शासन कर सकते हैं, लेकिन तुम लोग व्यर्थ ही अकारण अपनी ऊर्जा भौंकने में नष्ट कर रहे हो। इस आदत को छोड़ना होगा। केवल यही तुम्हारा पाप और अपराध है, यही मूल पाप है। ‘‘सभी कुत्तों को यह सुनकर हमेशा यह अहसास होता था कि वह बिलकुल ठीक और तर्कपूर्ण बात कह रहा था ‘तुम लोग आखिर क्यों भौंकते चले जाते हो? और ऊर्जा भी व्यर्थ नष्ट होती है, कोई भी कुत्ता भौंक— भौंक कर थक जाता है। दूसरी ही सुबह वह फिर भौंकना शुरू कर देता है और फिर रात होने पर ही वह थकता है। आखिर इस सभी की क्या तुक है?वे सभी अपने नेता की कही बात को समझ सकते थे, लेकिन वे यह भी जानते थे कि वे लोग बस कुत्ते भर हैं, बेचारे विवश कुत्ते। आदर्श बहुत महान था और उनका नेता वास्तव में एक ज्ञानी था, क्योंकि वह जिस बात का उपदेश दे रहा था, वह वैसा कर भी रहा था। वह कभी भी भौंकता नहीं था। तुम उसका चरित्र भली भांति देख सकते हो, उसने जिस बात का उपदेश दिया, स्वयं उसी के अनुरूप चला भी।लेकिन धीमे— धीमे निरंतर उससे उपदेश सुनते सुनते वे लोग आखिर थक गए। एक दिन उन्होंने तय किया—वह उनके नेता का जन्मदिवस था और उन्होंने यह निर्णय लिया कि कम से कम आज की रात, अपने नेता की बात का सम्मान रखते हुए वे रात भर भौंकेगे नहीं और यही उनका नेता के लिए उपहार होगा। इसकी अपेक्षा वे किसी और बात से इतने अधिक खुश न हो सकते थे। उस रात सभी कुत्तों ने भौंकना बंद कर दिया। यह बहुत कठिन और श्रमपूर्ण था। यह ठीक उसी तरह था, जैसे तुम ध्यान कर रहे हो तो विचारों को रोकना कितना कठिन हो जाता है। उन सभी के लिए वैसी ही समस्या थी वह। उन्होंने भौंकना बंद कर दिया, जब कि वे हमेशा भौंका ही करते थे। और वे लोग कोई महान संत नहीं थे, बल्कि मामूली कुत्ते थे। लेकिन उन्होंने कठिन प्रयास किया। यह बहुत श्रमपूर्ण था। वे सभी आंखें बंद किए अपनी— अपनी जगह छिपे हुए थे। आंखें बंद कर दांत भींचे हुए वे खामोश बैठे थे, न वे कुछ देख सकते थे और न कुछ सुन सकते थे। वजह एक महान अनुशासन का पालन कर रहे थे।उनका नेता पूरे शहर में चारों ओर घूमा। वह बहुत उलझन में पड़ गया। वह उपदेश किन्हें दे? अब शिक्षा किन्हें दे? आखिर यह हुआ क्या—पूरी तरह शांति व्यास है चारों ओर। तभी अचानक जब आधी रात गुजर चुकी थी, वह इतना अधिक उत्तेजित हो उठा, क्योंकि उसने कभी सोचा तक न था कि सभी कुत्ते उसकी बात सुनेंगे। वह भली भांति जानता था कि वे लोग कभी उसकी बात सुनेंगे ही नहीं क्योंकि कुत्तों के लिए भौंकना एक स्वाभाविक बात थी। उसकी मांग अप्राकृतिक और अस्वाभाविक थी, लेकिन कुत्तों ने भौंकना बंद कर दिया। उसकी पूरी नेतागीरी दांव पर लगी हुई थी। आखिर कल से वह करेगा क्या? क्योंकि वह केवल उपदेश और शिक्षा देना जानता था। उसकी पूरी शासन व्यवस्था दांव पर लगी हुई थी। और तब पहली बार उसने महसूस किया, क्योंकि वह निरंतर सुबह से लेकर रात तक उन्हें शिक्षा और उपदेश ही देता रहता था, इसी वजह से उसे कभी भी भौंकने की जरूरत महसूस नहीं होती थी। उसकी ऊर्जा उसी में इतनी अधिक लगी हुई थी, कि वह एक तरह का भौंकना ही था।लेकिन उस रात कहीं भी, कोई भी गलती करता मिला ही नहीं। और उस उपदेशक कुत्ते में भौंकने की तीव्र लालसा शुरू हो गयी।एक कुत्ता आखिर एक कुत्ता ही तो होता है। तब वह एक अंधेरी गली में गया और उसने भौंकना शुरू कर दिया। जब इसे दूसरे कुत्तों ने सुना तो सोचा कि किसी एक कुत्ते ने समझौते को तोड़ दिया है, तब उन्होंने कहा— ‘‘फिर हमीं लोग आखिर यह दुख क्यों सहे?‘‘ पूरे शहर ने ही जैसे भौंकना शुरू कर दिया। तभी उस नेता ने वापस लौटकर कहा— ‘‘अरे मूर्खों! तुम लोग भौंकना कब बंद करोगे? क्योंकि तुम लोगों के भौंकने से ही हम लोग केवल कुत्ते ही बनकर रह गए हैं, अन्यथा पूरे संसार पर हमारा अधिकार होता।‘‘

आनंद योग–(दि बिलिव्ड)–(प्रवचन–08) 

Thursday, June 23, 2016

स्वयंभू


स्कूल के आस पास चारों ओर खुला मैदान है और बीच-बीच में आठ-दस पीपल और बरगद के छायादार पेड़ों के नीचे किसी न किसी की याद में बनाए टियाले फुर्सत में रहने वालों के स्थाई ठीये हैं। किसी कोने पर ताश के पत्ते बाजियों में पीटे फैंटे जा रहे हैं तो दूसरे पर भंगेड़ी-नशेड़ी नशे में दम साध रहे हैं। कुछ टियालो के ऊपर पानी के कोरे मटके भरे हैं। यहां से स्कूली बच्चे व राहगीर आते-जाते प्यास बुझाते हैं। इन्हीं पेड़ों के दूसरी तरफ पक्की सड़क है और सड़क के पार निजी भूमि पर इक्का-दुक्का दुकानें। पीपल पेड़ों की शृंखला के पीछे एक तरफ शिव मंदिर और दूसरी तरफ खोखे व अस्थाई दुकानें हैं जो दिन ढलते ही मयखानों में तबदील हो जाती हैं। चालीस के आस-पास आवारा गायें है जो दिनभर जुगाली करते हुए सुस्ताती है और रात को लोगों की फसलें तबाह करती है। आसपास के कई गांवों की खबर यहां तुरंत मिल जाती है। लोग इस स्थान को संध्याबाड़ी कहते हैं जब कि रौनक दिनभर रहती हैं।
आज संध्याबाड़ी के सबसे बडे टियाले पर बरगद के पेड़ के नीचे एक साधु शांत चित्त ध्यान मुद्रा में बैठा है। लोग आ-जा रहे हैं। जुआरी उसी टियाले के दूसरे हिस्से में पत्ते फेंट रहे हैं। पता नहीं ये साधु कब मांगने शुरू हो जाए इसीलिए देखकर भी सभी अनदेखा कर रहे हैं। शाम को मयखानों में रौनक बढ़ रही है मगर साधु शांतचित ध्यान मुद्रा में बैठा है। दूसरे दिन भी स्थिति यथावत बनी रही मगर किसी ने साधु से वार्तालाप नहीं किया। तीसरे दिन नहा धोकर शिव मंदिर में माथा टेक कर साधु ने फिर टियाले पर आसन जमा लिया। उत्सुकता सभी में हैबिना खाए पिए ये साधु यहां क्यूं बैठा है…? इसी उत्सुकतावश कुछ गंजेडी भंगेडी आकर साधु के पास बैठ गए। जय हो महाराज…! साधु ने बड़ी ही विनम्रता से दोनों हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया। थोड़ी देर बाद किसी ने पूछ ही लिया बाबा जी परसों से यहां विराजमान हैं कुछ खाया पिया क्या…? साधु ने न की मुद्रा में सिर हिलायातो कुछ आस-पास से मांग क्यों नहीं लेते…? गर्दन हिलाते हुए साधु बोला
रहिमन वे नर मर गए जो कहुं मांगन जाएं
उनसे पहले वे मुये जिन मुख निकसत नाहीं
शिवजी को सब की चिंता है, जब शिव कृपा होगी यही कोई न कोई दे जाएगा। शाम को मंदिर के पुजारी प्रसाद बांटते हुए साधु को भी दे गए, जाते-जाते एक अर्ध निवेदन भी कर गएआप चाहें तो मंदिर में तीन दिनों के लिए ठहर सकते हैभोजन की व्यवस्था हो जाएगी। साधु ने शिव ओम की ध्वनि के साथ प्रसाद ग्रहण कर कमंडल में रख जल पिया और ध्यान मुद्रा में लीन हो गए।
अब गांव वाले देखने आने लगेक्या प्रतापी साधु है वरना आजकल के बाबा तो पाखंडी हैं। यह बात कई गांवों में फैल गई। लोग बाबाजी के लिए सुबह-शाम खाना भेज देते। दिन में फलों का ढेर लग जाता तो बाबा जी बच्चों में बांट देते। चढ़ावा ज्यादा चढ़ने लगा तो भंगेड़ी और स्कूल के बच्चों में भी बंटने लगा। बाबा जी दोपहर को प्रवचन देने लगे या कहिए ज्ञान की गंगा बहने लगी। फिर एक दिन बाबा जी ने अपने यहां आने का प्रयोजन बताया कहा शिवजी की इच्छा है और काली का निर्देश है जहां शिव स्वयं प्रकट होंगे। शिवमशिवमकीर्ति चहुं ओर फैल गई। फिर एक सुबह फूलमालाओं से सजी दो गज जमीन पर पूजा-अर्चना के साथ दूध लस्सी जल वेल पत्र चढ़ने लगा। फल और मिठाइयों के ढेर लगने लगे। रुपए चढ़ते तो बाबाजी मस्ती में झूमते हुए किसी भी कन्या की झोली में डाल देतेजा बच्चा तेरा कल्याण हो। साधु हूं स्वादु नहीं
पैसों का मैं क्या करूंगा…. बोलो शिवम शिवमबाबाजी नारा लगाते स्वयंभू सारे सुर में सुर मिलाते प्रकट होचेले प्रकट होने लगे लूले-लंगड़ेकुछ हट्टे-कट्टे श्वेत वस्त्रधारी। सब के सब अभीभूत सबकी अपनी-अपनी कथा। किसी को बाबा अपने तप के बल पर यमलोक से वापस लाए थे तो किसी की नजर वापस लाए थे। कोई अपना सर्वस्व लुटा चुका था कोई सर्वस्व लुटाकर वापस पाया गया था। बस एक ही शिकायत सभी की जुबान पर थीबाबाजी समाज सेवा के लिए शिव की आज्ञा से बिना बताए गायब हो जाते हैं। हमारा तो एक ही मकसद है बाबाजी की सेवा में जीवन समर्पण। चेलों के बढ़ने के साथ-साथ तंबू भी बढ़ते गए। एक कॉलोनी आबाद हो गई। सूर्यास्त के बाद तथा सूर्योदय से पहले इस कालोनी में प्रवेश वर्जित था।
छोटी-सी आरती महाआरती मे तबदील हो गई। लाखों भक्तों का रेला रोज आ-जा रहा था बाबाजी हर रोज 4-5 लाख रुपए दीन-हीनों में बांट देते। चढ़ावा 40 और 50 लाख प्रतिदिन पहुंच गया। लोगों का मेला लग गया गाड़ियों से मैदान पर गया। अस्थाई दुकानों की पूरी बस्ती आबाद हो गई। सारा माहौल भक्तिमय हो गया। मयखाने बंद हो गए। माहौल के साथ-साथ गांव की तकदीर भी बदल गई। कुछ लोग तो इसी आस में दिन-रात पड़े रहते की कब बाबा नोटों की बरसात से उन्हें भी मालामाल कर दें। पूरे जनपद में मुनादी करवाई गई। स्वयंभू शिवलिंग धरती का सीना फाड़ कर प्रकट होगे। नए ज्योतिर्लिंग की स्थापना होगी। फूलों से सजे कुंड पर हर वक्त धाराप्रवाह दूध लस्सी बहने लगी।
जूते-चप्पल बेल्ट पर्स रखने के लांकर वाले चांदी कूटने लगे। गांव की औरतें घड़े भर-भर कर पानी बेचने लगी। गौ सेवा के लिए मुट्ठीभर घास सौ-सौ रुपए में बिकने लगा। बाबा की कृपा से गांव वाले मालामाल थे। गायों को वही पर बैठे बिठाए चारा मिल रहा था अतः वह अब फसलों को नुकसान नहीं पहुंचा रही थी। पार्किंग के नाम पर खाली जगह से लाखों कमाए जा रहे थे। फिर घोषणा हुई एक सौ आठ दिनों में स्वयंभू पूर्णतया बाहर आ जाएंगे। और फिर चमत्कार हो गया। धरती का सीना फाड़कर स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन होने लगे। हर रोज शिवलिंग थोड़ा-थोड़ा ऊपर आने लगा। खबरिया चैनल पल-पल की कवरेज दिखा रहे हैं। संदेह और आशंकाएं भी व्यक्त की जा रही है। लोगों की श्रद्धा विज्ञान पर भारी पड़ रही है। भक्तों का रेला
नोटों की बरसात थमने का नाम नहीं ले रही। भंडारे-जगराते कीर्तन दिन-रात शुरू हो गए। बैंक वाले भी रोजाना इतना कैश लेने के लिए मना कर रहे हैं। हर दिन कैश वैन अब बड़े शहर जा रही है। लोगों की श्रद्धा जय-जयकारों के उद्घोषहर कोई दिल खोलकर दान कर रहा है। लोग आगंतुकों की सेवा में जुटे हैं। इतनी खुली जगह पर भी तिल धरने की जगह नहीं बची है। नेता अभिनेता और व्यापारिक घरानों की आवाजाही अब बढ़ गई है। सुरक्षा के लिए पुलिस बल तैनात। आंतरिक सुरक्षा का जिम्मा बाबाजी के विश्वसनीय चेले उठा रहे हैं। एक और घोषणा की गई। सावन महीने के प्रथम सोमवार को यह ज्योतिर्लिंग जनता को समर्पित कर दिया जाएगा। यहां एक भव्य मंदिर का निर्माण होगा। उधर झूले वाले बाबा आकर्षण और श्रद्धा का केंद्र बने हुए है। जिन विवाह योग्य कन्याओं को वर नहीं मिल रहे वह झूले वाले बाबा से आशीर्वाद लेंशीघ्र विवाह होगाऐसा बाबा जी का मानना है। झूले वाले बाबा की मनोहारी छवि युवाओं के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। सिर पर मोर मुकुट फूलों का ताज, गले में विविध रंगों की फूल माला और फूलमालाओं से जड़ा झूला जिसके ऊपर बाबाजी लगातार झूलते रहते है। उन्होंने प्रण लिया हे कि वह जमीन पर कदम नहीं रखेंगे। संध्याबाड़ी गांव से शहर नजर आ रही है। दीन-दुखियों की कतारें लगी है। पंडाल भरे हैंबाबा जी ने एक बार फिर घोषणा की शिवलिंग जब पूर्णतया बाहर आ जाएंगे तो उस की स्थापना के बाद ही भक्तों की समस्याओं का निदान होगा। भक्तों का इंतजार खत्म हुआ। भक्त बड़ी बेसब्री से प्रथम सोमवार का इंतजार कर रहे थे। रविवार को 51 गाड़ियों में बैठकर बाबाजी और उनके चेले हरिद्वार से रुद्राभिषेक के लिए गंगाजल लाने निकले। लोगों ने हर्षोल्लास के साथ बैंड-बाजे बजाते हुए उन्हें हरिद्वार के लिए रवाना किया। बाबाजी ने जाते समय अपने एक स्थानीय चेले को स्वयंभू के पास हर पल हाजिर रहने के निर्देश दिए तथा ताकीद की कि जब तक वह गंगाजल लेकर वापस नहीं आते तब तक स्वयंभू प्रकट होंका उद्घोष जारी रखें। सूर्योदय से पहले ही लौटकर वह गंगा जल से रुद्राभिषेक कर स्वयंभू की स्थापना के बाद आम जनता को समर्पित करेंगे। सन्ध्याबॉड़ी में आज की रात शायद ही कोई सोया होगा। सूर्योदय होने वाला मगर बाबा जी और उनके साथी नहीं लौटे लोगों में कानाफूसी हो रही है। दिन चढ़ आया भजन मंडलियों का उत्साह कुछ ठंडा पड़ गया मगर चर्चाएं गर्म होने लगींकहीं कुछ अनहोनी तो नहीं हो गई। अब तो सूर्य भगवान भी सिर पर चढ़ आए हैं। खबरिया चैनलों के पत्रकार भी कई कयास लगाने जुट गए हैं। आखिर क्यूं नहीं लौटे बाबाऔर उनके चेले। दोपहर तक आलम यह है कि बिन दूल्हे की बारात आखिर जाए कहांबाबा जी और उनके चेलों का सही-सही अता-पता तो किसी के पास नहीं है, न ही कोई मोबाइल नंबर। दोपहर तक पता चला की स्थानीय युवाओं की एक टीम जो बाबाजी के दल के साथ गई थी उनकी गाड़ी बीच रास्ते में ही खराब हो गई थी वह हरिद्वार पहुंच ही नहीं पाए तथा अब बस द्वारा संध्याबाड़ी लौट रही है।
इस खबर से पुलिस और प्रशासन के कान खड़े हो गए उन्होंने लोगों से अपील की कि वह संध्याबाडी से दूर चले जाएं। पुलिस ने सबसे पहले वीआईपी तंबुओं की जांच की तो पाया गया कि बिस्तर के अलावा कोई खास सामान न आया था, न गया। कुछ तंबुओं में विदेशी व महंगी शराब की खाली बोतलों के ढेर लगे थे। मुर्गे तथा मछली की हड्डियां यहां-वहां बिखरी पड़ी थी। बाबा के स्थानीय सेवकों ने बताया कि काली के कुछ चेले सूर्यास्त के बाद रोज शाम को काली मां को भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करते थे तथा उन्हें भी यह प्रसाद खूब दिया जाता रहा है। पुलिस ने घेराबंदी कर लोगों को अपने-अपने घर जाने का आदेश दे दिया मगर एक प्रश्न सब के मन पर बार-बार उछल कर बैठ जाता। शिवलिंग तो धरती का सीना फाड़कर प्रकट हुए ही हैये तो झूठ नहीं। खबरिया चैनल हर एक तंबू में घूम-घूम कर बाबा के चेलों के कुकृत्य की निशानदेही कर रहे हैं। अंधभक्तों के उन्माद की खिल्ली उड़ा रहे हैं। पुलिस के जांच दल अब स्वयंभू की तरफ है। खबरिया चैनलों की कई आंखें स्वयंभू शिवलिंग पर जमी है। कुंड के ऊपर से पूजा-अर्चना सामग्री हटाई जा रही है। उधर बाबाजी चेलों के साथ अपना गैटअप बदल कर ट्रेन के वातानुकूलित डिब्बे में बैठकर ठहाके मार रहे हैं। अरे वो कौन बोला कि बाबाजी हमें यमलोक से वापस लाये हैहा हा हा यारक्या फैंकू निकले तुम।
अगले कार्यक्रम में तुम्हारा नाम फैंकूनंद महाराज रखेंगे। एक जोरदार ठहाका। हाहाहाअच्छे कलाकार हो गए हो तुम। और झूले वालेतुम ने तो कमाल ही कर दिया धरती पर बिना पैर रखे लाखों में खेल गए। अपनी शादी तो करवा लेता पहलेहा हा हा फिर एक जोरदार ठहाका। भाई पिछले कार्यक्रम में हठ योगी बनकर बड़ी मुसीबत मोल ली थीसबका मालिक एकउंगली लगातार खड़ी रखने से बहुत पीड़ा भोगी। ऐसे दो-चार कार्यक्रम सफल निकल जाए तो शादी भी कर लेंगे। उधर बाबा जी के एक और शिष्य हकलायेभाई ऐसा कोई कार्यक्रम विदेश में भी रखें जरा मजा आ जाये…! अबे विदेश में ऐसी अंधभक्त श्रद्धा कहांभूखे मरोगे। उधर शिवलिंग को उठाकर पुलिस वाले ले गए खबरिया चैनल अभी भी जूम मार-मारकर चिल्ला रहे हैं आखिर धरती का सीना फाड़कर कैसे प्रकट हुए स्वयंभू…? कुछ चैनल हरिद्वार तक गाड़ियों का पीछा कर आए। सहारनपुर रेलवे स्टेशन पर पत्रकार चिल्ला रहे हैं यही वो जगह है यहां से बाबा अपना काफिला छोड़कर कोई ट्रेन पकड़ लिए। दूसरे चैनल ने गाड़ियों को भेजने वाली ट्रांसपोर्ट कंपनी ढूंढ़ ली है। चूना खैनी मलते हुए चालक बता रहे हैहम तो एडवांस मिलने पर गए थे बुकिंग हरिद्वार की थी मगर एक-एक कर सभी लोग सहारनपुर पहुंचते-पहुंचते उतर लिए। अगले दिल एक और चैनल हर आधे घंटे बाद प्रोमो में चिल्ला रहा हैआज खुलेगा स्वयंभू का रहस्य देखिए रात आठ बजे हमारे चैनल पर। लोगों ने बड़ी उत्सुकता से देखा कुछ भेड़-बकरियां स्वयंभू के प्रकट होने की जगह पर चने चबा रही थी। एक वैज्ञानिक बता रहा हैजैसे-जैसे शिवलिंग पर दूध लस्सी और जल चढ़ाया जाता नीचे दबाये हुए चने फूलते और शिवलिंग ऊपर उठ जाता।

Wednesday, June 22, 2016

मैं हूं न, पापा !

अचानक होने वाली पत्नी की मौत ने उसे बुरी तरह से आहत कर डाला था। मिलने-जुलने वालों तथा रिश्तेदारों के पास होने से दिन तो किसी तरह कट गया परन्तु रात का अन्धेरा उसे खाने को आ रहा था। उसके बराबर में पांच साल का एक बेटा और आठ साल की पुत्री सोयी हुई थी। वह थोड़ी देर तक  उनकी तरफ ताकता रहा, फिर फफक-फफक कर रो पड़ा। बन्द आंखों से आंसू धारा बनकर बह रहे थे।
सहसा उसे अपने कंधे पर किसी का हाथ रखा महसूस हुआ। उसने मुंह  घुमाकर देखा। बेटी घुटनों के बल बैठी उसके कंधे पर हाथ रखे हुए थी।
पिता को अपनी ओर देखते पाकर बोल उठी, ‘पापा, आप रो क्यों रहे हो?’ ‘बेटी अब तुम्हारे भाई की देखभाल कौन करेगा? कौन तुम लोगों के कपड़े  धोयेगा? कौन हम सब के लिए खाना पकायेगा?’ कहते-कहते फिर से फफक उठा था वह।
मैं हूं न, पापा! आप रोईये मत।बेटी किसी बड़ी औरत की तरह कह रही थी। उसने बेटी के मुंह की ओर देखा तो लगा कि बेटी नहीं, उसकी अपनी मां उसे सांत्वना दे रही है।

Saturday, June 18, 2016

यादों का किस्सा...


..... मै यादों का किस्सा खोलूँ तो,
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं.......


मै गुजरे पल को सोचूँ तो,
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं.........


अब जाने कौन सी नगरी में,
आबाद हैं जाकर मुद्दत से........


मै देर रात तक जागूँ तो ,
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं........


कुछ बातें थीं फूलों जैसी,....
कुछ लहजे खुशबू जैसे थे,....


मै शहर-ए-चमन में टहलूँ तो,....
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं.....


सबकी जिंदगी बदल गयी,....
एक नए सिरे में ढल गयी,....


किसी को नौकरी से फुरसत नही.......
किसी को दोस्तों की जरुरत नही........


सारे यार गुम हो गये हैं.......
"तू" से "तुम" और "आप" हो गये है........


मै गुजरे पल को सोचूँ तो,
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं.......


धीरे धीरे उम्र कट जाती है......
जीवन यादों की पुस्तक बन जाती है,...


कभी किसी की याद बहुत तड़पाती है...
और कभी यादों के सहारे ज़िन्दगी कट जाती है ........


किनारो पे सागर के खजाने नहीं आते, ....
फिर जीवन में दोस्त पुराने नहीं आते........


जी लो इन पलों को हस के दोस्त,
फिर लौट के दोस्ती के जमाने नहीं आते ....



Sunday, May 29, 2016

चार किताबें पढने दो साहब






नन्हीं - नन्हीं बच्चियों को

चार किताबें पढने दो साहब


क्योंकि की.....


कोख से बच आई हैं .


दहेज से भी बच जायेगी!

Sunday, May 22, 2016

तुम चलो तो हिंदुस्‍तान चले



फलक पकड़ के उठो और हवा पकड़ के चलो । फलक पकड़ के उठो और हवा पकड़ के चलो ।
तुम चलो तो हिंदुस्‍तान चले । तुम चलो तो हिंदुस्‍तान चले ।।
लगाओ हाथ के सूरज सुबह निकाला करे । हथेलियों में भरे धूप और उछाला करे ।।
हो..लगाओ हाथ के सूरज सुबह निकाला करे । हथेलियों में भरे धूप और उछाला करे ।।
उफ़क़ पे पाँव रखो और चलो अकड़ के चलो । फ़लक पकड़ के उठो और हवा पकड़ के चलो ।।
फ़लक पकड़ के उठो और हवा पकड़ के चलो ।। फ़लक पकड़ के उठो और हवा पकड़ के चलो ।।
तुम चलो तो हिंदुस्‍तान चले । तुम चलो तो हिंदुस्‍तान चले ।।हिंदुस्‍तान चले ।।।चलो !!!

Saturday, April 2, 2016

हर बिछड़ना ,बिछड़ना नहीं ...

वो अब शायद दोबारा कभी नहीं मिलेगी !

डॉक्टर के क्लीनिक पर मेरे साथ उसकी माँ भी अपनी बारी का इंतज़ार कर रही थी ! वो लाल रंग की एक सुन्दर फ्रिल वाली फ्रॉक के साथ लाल ऊन के फ़ीतेदार जूते पहने एक छह माह की बहुत प्यारी बच्ची थी! पांच दस मिनिट उसे पुचकारने से वो मुस्कुराने लग गयी थी! फिर जब उसे गोद में लेने को हाथ बढ़ाया तो वह दोनों हाथ फैलाकर मेरी गोद में लपक आई! अगले बीस मिनिट तक हम खूब हंसे, खिलखिलाए! उसकी माँ उसे मेरे पास ही छोड़कर डॉक्टर को दिखाने चली गयी! वो अपनी उजली चमकदार आँखों से मुझे देखती और मैं गुदगुदी करने के लिए उंगलियां उसकी ओर बढ़ाती और वो ज़ोर से खिलखिला उठती! हम दोनों एक दूसरे के साथ खुश थे! उसकी माँ ने बाहर आकर उसे गोद में लिया और जाने लगी! मैंने उसे टाटा किया और वो अपने दोनों हाथ फैलाकर मेरी गोद में आने के लिए लगभग पूरी लटक गयी! वो मचलती रही और कार तक जाते जाते वो दोनों हाथ फैलाए मेरी गोद में आना चाह रही थी! एक पल को ऐसा लगा जैसे वो मुझे बहुत अच्छे से जानती है!

खैर उसे जाना था ..वो चली गयी!

उसके जाने के बाद न जाने कितने चेहरे आँखों के सामने से घूम गये जो जीवन के किसी न किसी मोड़ पर मिले थे फिर कभी न मिलने के लिए! उन्हें रुकने की ज़रुरत भी न थी.. चंद मिनिटों, घंटों या दिनों में वो अपना काम बखूबी कर गए थे! इनमे से कई हमें बहुत कुछ दे जाते हैं अपनी कहानियों,  अनुभवों की शक्ल में और कई हमसे कुछ ले जाते हैं! ऐसे लोगों का मिलना शायद हमें अन्दर से समृद्ध करने के लिए होता है! तभी तो वो चेहरे कभी न भूल सके !

शाजापुर की छोटी सी ओना, मोना ! तीन साल और एक साल की ऑफिस के आस पास फुदकती दो बहने!  जिनकी सुबह से शाम तक हमारे ऑफिस के आस पास कटा करती थीं! अब बहुत बड़ी हो गयी होंगी! ढूँढने से मिल भी जाएंगी ये वो मोना न होंगी! पापा के पेट पर बैठकर चावल खाने वाली छुटकी सी मोना अब कभी नहीं मिलेगी! शायद जिन्हें कभी नहीं मिलना होता वो जाने से पहले हमारे दिल में सदा के लिए बस जाया करते हैं! ऐसे प्यारे लोगों का जीवन में दोबारा न तो इंतज़ार होता है,  न फिर से मिलने की ख्वाहिश और न उनके जाने का दुःख! ये बस आते हैं क्योंकि इन्हें मिलना होता है और चले जाते हैं!

नेपाल  की आई सरला आंटी, मॉर्निंग वाक पर मिला एक बच्चा जिसने उसकी साइकल की चेन चढाने के बदले मुझे आपनी साइकल पर बैठाकर मंजिल तक छोड़ने की पेशकश की थी,  ट्रेन के सफ़र में मिली एक लड़की जिसने मुझे अपना राज़दार बनाया था, एक सेमीनार में मिला वो सपनो में खोया नौजवान जिससे मिलकर एहसास हुआ कि इंफेचुएशन पर केवल टीनएज का हक़ नहीं है! एक और ट्रेन यात्रा में मिले वो एल आई सी वाले अंकल जिन्होंने अपने पिता के लिए लिखी एक कविता सुनाई थी और फिर रो पड़ी थे! मैं चंडीगढ़ उतर गयी था और वो कालका  चले गए थे! उनकी कविता की आखिरी लाइन थी..

"पिता का गुस्सा दरअसल आधी चिंता और आधा प्रेम होता है
पिता तो सिर्फ माफ़ करना जानते हैं"

क्या एक पीपल का पेड़ भी उस चिड़िया को याद करता होगा जो दूर सायबेरिया से चलकर आते वक्त दो घडी उसकी शाख पर बैठी थी और जाने कितनी कहानियाँ उस की शाखों पर बाँध कर चली गयी थी! वृक्षों के पास अनगिनत कहानियां होती हैं, ये चिड़ियाएँ ही हैं जो उन्हें समृद्ध बनाती हैं!


ऐसे लोग कभी बिछड़ते नहीं ...वे केवल मिलते हैं !

अथ श्री कॉकरोच, कॉकरोचनी कथा (सफाई अभियान)

एक दिन एक सरकारी ऑफिस में अलमारी के पीछे निवास करने वाले कॉकरोच और कॉकरोचनी चिंता में डूब गए! उन्होंने स्वीपरों को आपस में बात करते सुना कि सरकार ने सफाई अभियान चलाया है, सभी सरकारी कार्यालयों के अन्दर और बाहर से सारी गंदगी हटा दी जायेगी! कीड़े मकोड़े भी बेमौत मार दिए जायेंगे!
दोनो प्राणी चिंता में डूब गए! दोनों को पूरे दिन नींद न आये! रात भर हाय हाय करें! अब क्या होगा?
दोनों ने आंसू भरी आँखों और भारी ह्रदय से अपने पुश्तैनी घर को छोड़कर पलायन करने की सोची और बगल के ऑफिस के स्टोर रूम में बक्से के पीछे एक कुटिया बना ली! पूरा स्टोर घूमकर देखा, कोई और कॉकरोच न दिखा! वे दुबारा चिंता में डूब गए! "यहाँ तो ज्यादा मारकाट हुई है, लगता है"
कौकरोचनी को सुबह होते ही अपने पुराने घर की याद सताने लगी! वो शोक के मारे मुच्छी लहराकर बोली" चलो प्रिय.. एक चक्कर लगा आयें! दिन होते ही वापस आ जायेंगे"
दोनों जने आतंकवादी झाडुओं, स्प्रेओं और चप्पलों से छुपते छुपाते पुराने ठिकाने पर पहुंचे! वहाँ देखा तो एक दूसरा कॉकरोच कपल अपना आशियाना बना चुका था! कौकरोचनी के गुस्से का ठिकाना न रहा! जिस घर में वो ब्याह कर आई, यहीं सास ससुर की अर्थी सजी, यही वह पहली बार माँ बनी, आज उसके सपनों के घर में कोई और घुस आया है!
दोनों मियाँ बीवी मूंछ कसकर नए घुसपैठियों को ललकारने लगे! नयी कौकरोचनी ने डरते हुए बताया कि वे तो सरकार की घोषणा से घबड़ाकर बगल के ऑफिस के स्टोर रूम से भागकर यहाँ शरण लेने आ गए हैं!
दो मिनिट को सन्नाटा छा गया! तभी एक झींगुर और झींगुरनी ने नेपथ्य से एक गाना सुनाया जिसका भावार्थ यह था कि "हे मूर्खो.. जिसको स्वच्छता रखनी होती है वह सरकार के आदेश का इंतज़ार नहीं करता, जिसके यहाँ कॉकरोच पुश्तों से रहते आये हैं उसकी सात पीढ़ियों का भविष्य वैसे ही उज्जवल है और वैसे भी वे सरकारी कॉकरोच हैं इसलिए चिंता का त्यागकर आनंद मनाएं"
दोनों जोड़ों को यह सुनकर राहत मिली ! चारों ने एक साथ बड़े बाबू की मेज पर झिंगा ला ला बोल बोलकर समूह नृत्य किया और पार्टी मनाकर अपने अपने आशियाने को कूच किया !
अगले दिन सुबह दोनों ने बड़े बाबू को जब बगल की दीवार पर गुटखा थूकते और छोटे बाबू को समोसा खाकर परदे से हाथ पोंछते देखा तब उनकी जान में जान आई!
अगले दिन उन दोनों ने समाज सेवा करते हुए ऑफिस के चूहों , मच्छरों और छिपकलियों को भी झींगुर झींगुरनी का दोगाना मुफ्त में सुनवाया ! सभी प्राणियों में हर्ष छा गया !और वे सभी निश्चिन्त होकर सुखपूर्वक निवास करने लगे!

रो लो पुरुषो , जी भर के रो लो

बड़ा कमज़ोर होता है
बुक्का फाड़कर रोता हुआ आदमी
मज़बूत आदमी बड़ी ईर्ष्या रखते हैं इस कमज़ोर आदमी से
..................................................
सुनो लड़की
किसी पुरुष को बेहद चाहती हो ?
तो एक काम ज़रूर करना
उसे अपने सामने फूट फूट कर रो सकने की सहजता देना
...................................................
दुनिया वालो
दो लोगों को कभी मत टोकना
एक दुनिया के सामने दोहरी होकर हंसती हुई स्त्री को
दूसरा बिलख बिलख कर रोते हुए आदमी को
ये उस सहजता के दुर्लभ दृश्य हैं
जिसका दम घोंट दिया गया है
..................................................
ओ मेरे पुरुष मित्र
याद है जब जन्म के बाद नहीं रोये थे
तब नर्स ने जबरन रुलाया था यह कहते हुए कि
" रोना बहुत ज़रूरी है इसके जीने के लिए "
बड़े होकर ये बात भूल कैसे गए दोस्त ?
..............................................
रो लो पुरुषो , जी भर के रो लो
ताकि तुम जान सको कि
छाती पर से पत्थर का हटना क्या होता है
...............................................
ओ मेरे प्रेम
आखिर में अगर कुछ याद रह जाएगा तो
वह तुम्हारी बाहों में मचलती पेशियों की मछलियाँ नहीं होंगी
वो तुम्हारी आँख में छलछलाया एक कतरा समन्दर होगा
......................................
ओ पुरुष
स्त्री जब बिखरे तो उसे फूलों सा सहेज लेना
ओ स्त्री
पुरूष को टूट कर बिखरने के लिए ज़मीन देना

वाट्सएपिया रोमांस

वो लड़का इस ग्रुप में बहुत पहले से था ! लड़की ने महीने भर पहले ही ज्वाइन किया ! लड़का और लड़की अलग अलग प्रदेश के ! दोनों ने न कभी एक दूसरे का शहर देखा और न कभी एक दूसरे को! फोटो में भी नहीं.. देखते भी कैसे? लड़की ने अपनी प्रोफाइल पिक में एक म्याऊँ लगा रखी थी और लड़के ने कोई छोटी बच्ची!
बस एक दूसरे की पोस्ट पढ़कर दोनों एक दूसरे की सूरत अपने दिल में बनाया करते ! लड़का जब ग़ालिब की कोई ग़ज़ल लिखता, लड़की मीर को कोट करती ! लड़का हेमंत कुमार का गाना सुनवाता, जवाब में लड़की तलत को पेश करती!
एक दिन लड़के ने मनोहरश्याम जोशी की "कसप" से डी डी के पत्र का कोई अंश ग्रुप में डाला और लड़की ने झट से बेबी के अल्हड़ और कुमाउनी भाषा के पत्र का एक अंश जवाब में डाल दिया ! हांलाकि दोनों के बीच कभी हाय हेलो भी नहीं हुई थी लेकिन लड़के को लगा मानो वो खुद डी डी हो और बेबी ने उसे ख़त का जवाब दिया हो ! लड़के ने ठीक सोचा था ! लड़की जवाब देते हुए बेबी ही बन गयी थी!
लड़के को कुछ सूझा नहीं उसने न जाने किस झोंक में तीन डॉट" ... "बनाकर छोड़ दिए! लड़की के दिल की धडकनें तेज़ हो गयीं! उसकी तरफ से भी ठीक वही तीन डॉट " ..." आये मगर ग्रुप में नहीं!
लड़की सयानी थी! लड़की ने स्टेटस अपडेट किया
" बड़े अच्छे लगते हैं। ये धरती, ये नदिया, ये रैना और ..."
लड़का मुस्कुरा उठा!
अलबत्ता अभी भी दोनों ने एक दूसरे की तस्वीर नहीं देखी है मगर अब ग्रुप में उस लड़के के कुछ ख़ास शेर और गानों की पंक्तियाँ उन तीन डॉट्स के साथ ही पूरी होती हैं और लड़की भी अपनी कविता के अंत में तीन डॉट्स लगाना नहीं भूलती!
वाट्स एप के तमाम इमोटीकोन्स के बीच ग्रुप में वे तीन डॉट्स ऐसे झिलमिलाते हैं मानो किसी ने तीन सूरजमुखी के फूल खिला दिए हों!
हाँ .. मुहब्बत का इज़हार करने को तीन ही शब्द काफी होते हैं ना?
और शब्द न हों तो तीन डॉट्स...!

Monday, March 21, 2016

अफजल के बेटे को 95% अंक आते हैं तो सुर्खियां बनती हैं, मेरी बेटी अव्वल आती है तो कोई नहीं पूछता

अफजल पर देश में हल्ला हो रहा है। लेकिन जिन परिवारों का दोषी अफजल है उनके नाम तक किसी को याद नहीं है। शहीदों के परिवार सवाल करते हैं कि संसद पर हमले के दोषी अफजल के बेटे को 95% अंक आते हैं तो सुर्खियां बनती हैं, मेरी बेटी अव्वल आती है तो कोई नहीं पूछता? नेता JNU जाते हैं लेकिन हमसे मिलने कोई नहीं आता...हरियाणा और दिल्ली की सीमा पर मोहड़बंद गांव में शहीद विजेंद्र सिंह का घर है। उनकी पत्नी जयावती ने कहा कि संसद पर हमले में शहीद हुए लोगों के तो नाम तक किसी को याद नहीं। उन राजनेताओं को भी नहीं जिनकी जान शहीदों ने बचाई थी।दिल्ली पुलिस में थे विजेंद्र सिंहसंसद हमले के दौरान विजेंद्र सिंह संसद में ड्यूटी पर थे। जयावती ने बताया कि 13 दिसंबर 2001 की सुबह 12 बजे के आसपास उनकी बेटी ने जब टीवी पर देखा तो मुझे बताने आई। मैंने उसे जवाब दिया, अरे जहां तेरे पापा की ड्यूटी है वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता। उन्होंने बताया कि विजेंद्र के शहीद होने के बाद पांच बच्चों की जिम्मेदारी उनपर आ गई।उन्होंने बताया कि यहां बेटी का बाप कभी बेटी के ससुराल नहीं रुकता। लेकिन मेरे पिता दस सालों तक हमारे घर में रहे। हम बाप बेटी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहे। बच्चों को घर में बंद कर के जाना पड़ता। थक गए हम। उस पर भी जब अफजल की फांसी की बारी आई तो राजनीति करने लगे। हमने तो अपने मेडल तक लौटा दिए थे। वो कहते थे मेडल मत लौटाओ। अरे मेडल मतलब जीत, सम्मान। तो जब गुनहगार को फांसी नहीं दे रहे थे तो कैसा सम्मान।हर साल आती है सिर्फ चिट्ठीजयावती कहती हैं साल में सिर्फ एक चिट्‌ठी आती है। संसद के ऑफिस से। बोलते हैं 13 दिसंबर को आ जाओ और फूल चढ़ाकर श्रद्धांजलि दे दो। वो पिछले आठ सालों से आ रही चिट्‌टठियां निकालकर दिखाती भी हैं। बाकी दिनों में कोई उनकी खोज-खबर नहीं लेता।कमलेश कुमारी के पति अवधेश कुमार का कहना है कि ये कहानी किसी एक शहीद के परिवार की नहीं है। उन्होंने बताया कि हमले की दिन कमलेश संसद के गेट पर थी। दुश्मन की गोली की परवाह किए बिना उन्होंने गोलियों के बीच संसद का गेट बंद कर दिया था। उनके इस साहस के लिए उन्हें अशोक चक्र दिया गया था। ये सम्मान पाने वाली वो देश की इकलौती महिला सोल्जर हैं। अवधेश ने बताया कि उनकी दो बेटियां हैं। ज्योति और श्वेता। कमलेश चाहती थी हमारी बेटियों की पढ़ाई अच्छे से हो इसलिए हम दिल्ली में रहते थे। 'मेरी बेटियां भी अपनी मां की तरह बहादुर हैं। देश सेवा करना चाहती हैं। लोग जितनी बार अफजल और आजादी का नाम लेते हैं उतनी बार शहीदों का लेते तो हमें गर्व होता कि कोई याद तो करता है।' 'अफजल को ऐसे बनाया जैसे कारगिल वॉर जीतकर आया हो। घर में तलवार चला रहे हैं। चलो पाकिस्तान की बॉर्डर पर।' शहीद मातबर सिंह नेगी के बेटे गौतम नेगी ने कहा कि उन्होंने पिता की मौत से पहले कभी घर में बिजली का बिल भी नहीं भरा था। सारी जिम्मेदारी पापा ने निभाई थी। मातबर सिंह संसद की सिक्युरिटी में थे। अब गौतम उन्हीं की जगह नौकरी करता है। गौतम के मुताबिक, कोई शहीद होता है तो उसके घर एक दिन नेता जाते हैं। बाकी दिन परिवार उन नेताओं और सरकारी अधिकारियों के चक्कर काटता है। 'नेता जानते हैं वोट बैंक कन्हैया और अफजल हैं।'दिल्ली पुलिस में थे विजेंद्र सिंहसंसद हमले के दौरान विजेंद्र सिंह संसद में ड्यूटी पर थे। जयावती ने बताया कि 13 दिसंबर 2001 की सुबह 12 बजे के आसपास उनकी बेटी ने जब टीवी पर देखा तो मुझे बताने आई। मैंने उसे जवाब दिया, अरे जहां तेरे पापा की ड्यूटी है वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता। उन्होंने बताया कि विजेंद्र के शहीद होने के बाद पांच बच्चों की जिम्मेदारी उनपर आ गई।उन्होंने बताया कि यहां बेटी का बाप कभी बेटी के ससुराल नहीं रुकता। लेकिन मेरे पिता दस सालों तक हमारे घर में रहे। हम बाप बेटी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहे। बच्चों को घर में बंद कर के जाना पड़ता। थक गए हम। उस पर भी जब अफजल की फांसी की बारी आई तो राजनीति करने लगे। हमने तो अपने मेडल तक लौटा दिए थे। वो कहते थे मेडल मत लौटाओ। अरे मेडल मतलब जीत, सम्मान। तो जब गुनहगार को फांसी नहीं दे रहे थे तो कैसा सम्मान।हर साल आती है सिर्फ चिट्ठीजयावती कहती हैं साल में सिर्फ एक चिट्‌ठी आती है। संसद के ऑफिस से। बोलते हैं 13 दिसंबर को आ जाओ और फूल चढ़ाकर श्रद्धांजलि दे दो। वो पिछले आठ सालों से आ रही चिट्‌टठियां निकालकर दिखाती भी हैं। बाकी दिनों में कोई उनकी खोज-खबर नहीं लेता।कमलेश कुमारी के पति अवधेश कुमार का कहना है कि ये कहानी किसी एक शहीद के परिवार की नहीं है। उन्होंने बताया कि हमले की दिन कमलेश संसद के गेट पर थी। दुश्मन की गोली की परवाह किए बिना उन्होंने गोलियों के बीच संसद का गेट बंद कर दिया था। उनके इस साहस के लिए उन्हें अशोक चक्र दिया गया था। ये सम्मान पाने वाली वो देश की इकलौती महिला सोल्जर हैं। अवधेश ने बताया कि उनकी दो बेटियां हैं। ज्योति और श्वेता। कमलेश चाहती थी हमारी बेटियों की पढ़ाई अच्छे से हो इसलिए हम दिल्ली में रहते थे। 'मेरी बेटियां भी अपनी मां की तरह बहादुर हैं। देश सेवा करना चाहती हैं। लोग जितनी बार अफजल और आजादी का नाम लेते हैं उतनी बार शहीदों का लेते तो हमें गर्व होता कि कोई याद तो करता है।' 'अफजल को ऐसे बनाया जैसे कारगिल वॉर जीतकर आया हो। घर में तलवार चला रहे हैं। चलो पाकिस्तान की बॉर्डर पर।' शहीद मातबर सिंह नेगी के बेटे गौतम नेगी ने कहा कि उन्होंने पिता की मौत से पहले कभी घर में बिजली का बिल भी नहीं भरा था। सारी जिम्मेदारी पापा ने निभाई थी। मातबर सिंह संसद की सिक्युरिटी में थे। अब गौतम उन्हीं की जगह नौकरी करता है। गौतम के मुताबिक, कोई शहीद होता है तो उसके घर एक दिन नेता जाते हैं। बाकी दिन परिवार उन नेताओं और सरकारी अधिकारियों के चक्कर काटता है। 'नेता जानते हैं वोट बैंक कन्हैया और अफजल हैं।'दिल्ली पुलिस में थे विजेंद्र सिंहसंसद हमले के दौरान विजेंद्र सिंह संसद में ड्यूटी पर थे। जयावती ने बताया कि 13 दिसंबर 2001 की सुबह 12 बजे के आसपास उनकी बेटी ने जब टीवी पर देखा तो मुझे बताने आई। मैंने उसे जवाब दिया, अरे जहां तेरे पापा की ड्यूटी है वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता। उन्होंने बताया कि विजेंद्र के शहीद होने के बाद पांच बच्चों की जिम्मेदारी उनपर आ गई।उन्होंने बताया कि यहां बेटी का बाप कभी बेटी के ससुराल नहीं रुकता। लेकिन मेरे पिता दस सालों तक हमारे घर में रहे। हम बाप बेटी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहे। बच्चों को घर में बंद कर के जाना पड़ता। थक गए हम। उस पर भी जब अफजल की फांसी की बारी आई तो राजनीति करने लगे। हमने तो अपने मेडल तक लौटा दिए थे। वो कहते थे मेडल मत लौटाओ। अरे मेडल मतलब जीत, सम्मान। तो जब गुनहगार को फांसी नहीं दे रहे थे तो कैसा सम्मान।हर साल आती है सिर्फ चिट्ठीजयावती कहती हैं साल में सिर्फ एक चिट्‌ठी आती है। संसद के ऑफिस से। बोलते हैं 13 दिसंबर को आ जाओ और फूल चढ़ाकर श्रद्धांजलि दे दो। वो पिछले आठ सालों से आ रही चिट्‌टठियां निकालकर दिखाती भी हैं। बाकी दिनों में कोई उनकी खोज-खबर नहीं लेता।कमलेश कुमारी के पति अवधेश कुमार का कहना है कि ये कहानी किसी एक शहीद के परिवार की नहीं है। उन्होंने बताया कि हमले की दिन कमलेश संसद के गेट पर थी। दुश्मन की गोली की परवाह किए बिना उन्होंने गोलियों के बीच संसद का गेट बंद कर दिया था। उनके इस साहस के लिए उन्हें अशोक चक्र दिया गया था। ये सम्मान पाने वाली वो देश की इकलौती महिला सोल्जर हैं। अवधेश ने बताया कि उनकी दो बेटियां हैं। ज्योति और श्वेता। कमलेश चाहती थी हमारी बेटियों की पढ़ाई अच्छे से हो इसलिए हम दिल्ली में रहते थे। 'मेरी बेटियां भी अपनी मां की तरह बहादुर हैं। देश सेवा करना चाहती हैं। लोग जितनी बार अफजल और आजादी का नाम लेते हैं उतनी बार शहीदों का लेते तो हमें गर्व होता कि कोई याद तो करता है।' 'अफजल को ऐसे बनाया जैसे कारगिल वॉर जीतकर आया हो। घर में तलवार चला रहे हैं। चलो पाकिस्तान की बॉर्डर पर।' शहीद मातबर सिंह नेगी के बेटे गौतम नेगी ने कहा कि उन्होंने पिता की मौत से पहले कभी घर में बिजली का बिल भी नहीं भरा था। सारी जिम्मेदारी पापा ने निभाई थी। मातबर सिंह संसद की सिक्युरिटी में थे। अब गौतम उन्हीं की जगह नौकरी करता है। गौतम के मुताबिक, कोई शहीद होता है तो उसके घर एक दिन नेता जाते हैं। बाकी दिन परिवार उन नेताओं और सरकारी अधिकारियों के चक्कर काटता है। 'नेता जानते हैं वोट बैंक कन्हैया और अफजल हैं।'दिल्ली पुलिस में थे विजेंद्र सिंहसंसद हमले के दौरान विजेंद्र सिंह संसद में ड्यूटी पर थे। जयावती ने बताया कि 13 दिसंबर 2001 की सुबह 12 बजे के आसपास उनकी बेटी ने जब टीवी पर देखा तो मुझे बताने आई। मैंने उसे जवाब दिया, अरे जहां तेरे पापा की ड्यूटी है वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता। उन्होंने बताया कि विजेंद्र के शहीद होने के बाद पांच बच्चों की जिम्मेदारी उनपर आ गई।उन्होंने बताया कि यहां बेटी का बाप कभी बेटी के ससुराल नहीं रुकता। लेकिन मेरे पिता दस सालों तक हमारे घर में रहे। हम बाप बेटी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहे। बच्चों को घर में बंद कर के जाना पड़ता। थक गए हम। उस पर भी जब अफजल की फांसी की बारी आई तो राजनीति करने लगे। हमने तो अपने मेडल तक लौटा दिए थे। वो कहते थे मेडल मत लौटाओ। अरे मेडल मतलब जीत, सम्मान। तो जब गुनहगार को फांसी नहीं दे रहे थे तो कैसा सम्मान।हर साल आती है सिर्फ चिट्ठीजयावती कहती हैं साल में सिर्फ एक चिट्‌ठी आती है। संसद के ऑफिस से। बोलते हैं 13 दिसंबर को आ जाओ और फूल चढ़ाकर श्रद्धांजलि दे दो। वो पिछले आठ सालों से आ रही चिट्‌टठियां निकालकर दिखाती भी हैं। बाकी दिनों में कोई उनकी खोज-खबर नहीं लेता।कमलेश कुमारी के पति अवधेश कुमार का कहना है कि ये कहानी किसी एक शहीद के परिवार की नहीं है। उन्होंने बताया कि हमले की दिन कमलेश संसद के गेट पर थी। दुश्मन की गोली की परवाह किए बिना उन्होंने गोलियों के बीच संसद का गेट बंद कर दिया था। उनके इस साहस के लिए उन्हें अशोक चक्र दिया गया था। ये सम्मान पाने वाली वो देश की इकलौती महिला सोल्जर हैं। अवधेश ने बताया कि उनकी दो बेटियां हैं। ज्योति और श्वेता। कमलेश चाहती थी हमारी बेटियों की पढ़ाई अच्छे से हो इसलिए हम दिल्ली में रहते थे। 'मेरी बेटियां भी अपनी मां की तरह बहादुर हैं। देश सेवा करना चाहती हैं। लोग जितनी बार अफजल और आजादी का नाम लेते हैं उतनी बार शहीदों का लेते तो हमें गर्व होता कि कोई याद तो करता है।' 'अफजल को ऐसे बनाया जैसे कारगिल वॉर जीतकर आया हो। घर में तलवार चला रहे हैं। चलो पाकिस्तान की बॉर्डर पर।' शहीद मातबर सिंह नेगी के बेटे गौतम नेगी ने कहा कि उन्होंने पिता की मौत से पहले कभी घर में बिजली का बिल भी नहीं भरा था। सारी जिम्मेदारी पापा ने निभाई थी। मातबर सिंह संसद की सिक्युरिटी में थे। अब गौतम उन्हीं की जगह नौकरी करता है। गौतम के मुताबिक, कोई शहीद होता है तो उसके घर एक दिन नेता जाते हैं। बाकी दिन परिवार उन नेताओं और सरकारी अधिकारियों के चक्कर काटता है। 'नेता जानते हैं वोट बैंक कन्हैया और अफजल हैं।'दिल्ली पुलिस में थे विजेंद्र सिंहसंसद हमले के दौरान विजेंद्र सिंह संसद में ड्यूटी पर थे। जयावती ने बताया कि 13 दिसंबर 2001 की सुबह 12 बजे के आसपास उनकी बेटी ने जब टीवी पर देखा तो मुझे बताने आई। मैंने उसे जवाब दिया, अरे जहां तेरे पापा की ड्यूटी है वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता। उन्होंने बताया कि विजेंद्र के शहीद होने के बाद पांच बच्चों की जिम्मेदारी उनपर आ गई।उन्होंने बताया कि यहां बेटी का बाप कभी बेटी के ससुराल नहीं रुकता। लेकिन मेरे पिता दस सालों तक हमारे घर में रहे। हम बाप बेटी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहे। बच्चों को घर में बंद कर के जाना पड़ता। थक गए हम। उस पर भी जब अफजल की फांसी की बारी आई तो राजनीति करने लगे। हमने तो अपने मेडल तक लौटा दिए थे। वो कहते थे मेडल मत लौटाओ। अरे मेडल मतलब जीत, सम्मान। तो जब गुनहगार को फांसी नहीं दे रहे थे तो कैसा सम्मान।हर साल आती है सिर्फ चिट्ठीजयावती कहती हैं साल में सिर्फ एक चिट्‌ठी आती है। संसद के ऑफिस से। बोलते हैं 13 दिसंबर को आ जाओ और फूल चढ़ाकर श्रद्धांजलि दे दो। वो पिछले आठ सालों से आ रही चिट्‌टठियां निकालकर दिखाती भी हैं। बाकी दिनों में कोई उनकी खोज-खबर नहीं लेता।कमलेश कुमारी के पति अवधेश कुमार का कहना है कि ये कहानी किसी एक शहीद के परिवार की नहीं है। उन्होंने बताया कि हमले की दिन कमलेश संसद के गेट पर थी। दुश्मन की गोली की परवाह किए बिना उन्होंने गोलियों के बीच संसद का गेट बंद कर दिया था। उनके इस साहस के लिए उन्हें अशोक चक्र दिया गया था। ये सम्मान पाने वाली वो देश की इकलौती महिला सोल्जर हैं। अवधेश ने बताया कि उनकी दो बेटियां हैं। ज्योति और श्वेता। कमलेश चाहती थी हमारी बेटियों की पढ़ाई अच्छे से हो इसलिए हम दिल्ली में रहते थे। 'मेरी बेटियां भी अपनी मां की तरह बहादुर हैं। देश सेवा करना चाहती हैं। लोग जितनी बार अफजल और आजादी का नाम लेते हैं उतनी बार शहीदों का लेते तो हमें गर्व होता कि कोई याद तो करता है।' 'अफजल को ऐसे बनाया जैसे कारगिल वॉर जीतकर आया हो। घर में तलवार चला रहे हैं। चलो पाकिस्तान की बॉर्डर पर।' शहीद मातबर सिंह नेगी के बेटे गौतम नेगी ने कहा कि उन्होंने पिता की मौत से पहले कभी घर में बिजली का बिल भी नहीं भरा था। सारी जिम्मेदारी पापा ने निभाई थी। मातबर सिंह संसद की सिक्युरिटी में थे। अब गौतम उन्हीं की जगह नौकरी करता है। गौतम के मुताबिक, कोई शहीद होता है तो उसके घर एक दिन नेता जाते हैं। बाकी दिन परिवार उन नेताओं और सरकारी अधिकारियों के चक्कर काटता है। 'नेता जानते हैं वोट बैंक कन्हैया और अफजल हैं।'