Thursday, July 15, 2021

हरदिल अजीज मेरे गांव के कोहिनूर सुशील कुलरिया (प्रधान जी) को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि

15 जुलाई 2021... मेरे गांव के लिए बहुत भारी गुजरा। हमारे एक होनहार युवा साथी, ब्लॉक समिति सदस्य प्रतिनिधि, महाराजा रणजीत सिंह युवा क्लब के अध्यक्ष सुशील कुलरिया को काल के क्रूर पंजों ने हमसे छीन लिया। यह न केवल मेरी व्यक्तिगत क्षति है, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए भी कभी न पूरी होने वाली कमी है। सुशील कुलरिया ने सिर्फ नए विचारों से लबरेज थे, बल्कि हर विषय, हर व्यक्ति, हर समाज से जुड़े हर धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक गतिविधि से सकारात्मक रूप से जुड़े हुए थे। जहां तक मैंने देखा है, मेरे गांव या आस पास के क्षेत्र का कोई भी राजनीतिक, धार्मिक व सामाजिक कार्य प्रधान जी के बिना संपन्न होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। उस महान व्यक्ति से बिछड़ने का हमेशा ही अफसोस रहेगा। जिस व्यक्ति में छल कपट लेश मात्र भी ना हो उस व्यक्ति ने अपने अंतिम समय की भनक भी नही लगने दी, इस बात का रोष रहेगा। 



परमपिता परमात्मा से आपकी आत्मा के शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। नमन!

Thursday, January 16, 2020

35 की तरफ़ बढ़ता आदमी...

25-35 वाली उमर न समझदारी थोपने लगती है। आदमी घर का मोह छोड़ चुका होता है। छुट्टी पर भी जाए तो दिमाग में लौटकर रूटीन पकड़ने के ख्याल चलते रहते हैं। अब साल-डेढ़ साल घर न जाने पर भी फ़र्क़ पड़ना बंद हो गया है। थोड़ा अकेलापन चाहता है। किसी रोज़ घर पर पड़े-पड़े बिता दो, कोई याद तक न करे। छोटे बच्चे के साथ बाप को देखकर घबरा जाता है। ये झेलता कैसे होगा?

काफी बदल रहा होता है। शर्ट एक साइज बड़ी लेता है, ज़्यादा चलाने को नहीं, तोंद छुपाने को। उबाऊ मीटिंग्स से डील करना सीख जाता है, उसे पता होता है, यहां कई बड़ी बातें कही जाएंगी, जिसका 5% पूरा होना संभव होगा और यहां 'चाटो मत' कहने से बच गए तो साल के अंत में एकाध परसेंट बेहतर हो जाएगा। 

चकमक दफ्तरों में मुलम्मा चढ़े चेहरे देख फ़र्क़ पड़ना बंद हो जाता है। सबकी अपनी लड़ाई है, उस बीच जो जैसा दिख जाना चाहे, दिखने दो न। नॉस्टैल्जिक कम होता है, नॉस्टैल्जिक करने में चीजें काम नहीं आतीं, धूप की बदली दिशा, गंध, कान के ऊपर से निकली गर्म हवा या बस ये याद आ जाना कि अब तो कॉलेज से निकले भी 7 साल हो गए, ये सब नॉस्टैल्जिया भरता है।

दर्द की आदत पड़ गई है। आख़िरी बार कब सिर में दर्द नहीं था? अब तो गद्दे भी बेहतर खरीद लिए पीठ का दर्द क्यों नहीं जाता? दर्द और भी हैं। ख़बर आती है, रेप की, बमों के फटने की, मूर्खताओं की, ये सब चिढ़ भरते हैं, सिर में दर्द भरते हैं। सबसे ज़्यादा दर्द चिल्ला न पाने का होता है।

अब रजाई छोड़ने में दिक्कत नहीं होती, नौकरी छोड़ने का जी नहीं करता। पता रहता है, हज़ारों हैं जो इस काम को तरस रहे हैं, समझ ये भी आता है कि काम दुश्मन नहीं है। 
काम में खर्च होने में दिक्कत नहीं है। वक़्त बेचने में दिक्कत नहीं है, अगर 20% भी मन की कर लो तो नदियां बहती हैं, पर उनके किनारे छुट्टी बिताई जा सकती है।
 
गुस्सा ग़लत जगह निकलता है। महीनों में कभी-कभी आता है। अब अकरास होता है, चिढ़ होती है, क्षोभ सबसे ज़्यादा होता है। ऑटोवाला दस-बीस ज़्यादा नहीं ले पाता, आदमी ऐप से चलता है, ऑनलाइन पेमेंट करता है, 67 रुपए किराए पर 70 रुपये देने से भी बच जाता है। 

हर कोई किस्सा ले के चलता है, अपने हिस्से का। हर कोई अपनी लड़ाई लड़ रहा है, अलग तरीके से। कभी सामने पड़ें और मुंह उतरा दिखे तो एक स्माइल दे दीजिए। कभी बेवजह किसी से बात भी कर लीजिए, कभी सब देखकर भी किनारा कर लीजिए। कोई पिच्चर नहीं चल रही है। 35 की तरफ जाते आदमी से कई बातें कह सकते हैं, बस फैमिली बीच में न लाइए, फिर बांह चढ़ते देर नहीं लगती।

Wednesday, March 28, 2018

प्राइवेसी एक छलावा है ब्रो, नैतिकता की बात मत कीजिए


प्राइवेसी एक छलावा है। मैंने इस पर बहुत लम्बा लिखा है कुछ दिन पहले। बहुत लोग सामने वाले को गरियाकर अपनी बात कह रहे हैं। ऐसे किसी को गाली देकर नहीं लिखना चाहिए। लॉजिकल बात लिखना अपने आप में कुतर्की को गरियाने जैसा ही होता है।
दूसरी बात ये कहना चाहूँगा कि हमारा, आपका डेटा तो ऐसे ही पसरा हुआ है। प्रोफाइल में ऐसा क्या है जो हमने फेसबुक को नहीं दिया है? आँखों के रंग तक बता देते हैं। आईफोन को छोड़कर और कोई फोन ये क्लेम नहीं करता कि आपके फ़िंगर प्रिंट का डेटा कहाँ जाते हैं।
लेकिन बात ये है कि क्या वो आपका बुरा करने के लिए इनका इस्तेमाल करते हैं? ये बात सिर्फ नैतिकता पर टिकी है कि हमसे नहीं पूछा। आपका डेटा सरकार भी इकट्ठा करती है NSSO के ज़रिए, जनसंख्या के ज़रिए। उसमें जाति, धर्म, हैसियत सब बताए जाते हैं। वो पब्लिक डोमेन में होता है जिसका इस्तेमाल चुनावों में योजना बनाने के लिए होता रहता है।
अब हम इवॉल्व हो गए हैं। हम अपने डेटा को डिजिटली पब्लिक में शेयर कर रहे हैं कि हम अभी क्या कर रहे हैं, कहाँ जा रहे हैं, क्यों जा रहे हैं। अब सोचिए कि इसका उपयोग कोई डाका डालने के लिए कर ले तो कौन ज़िम्मेदार है?
नमो एप्प ने आपका डेटा लिया, कॉन्ग्रेस एप्प ने आपका डेटा लिया। लेकिन क्या इससे आपकी ज़ाती जिंदगी पर कोई फ़र्क़ पड़ा? क्या आपको टार्गेट किया गया किसी नकारात्मक उद्देश्य से? क्या आपका कुछ ऐसा चला गया जो आपने बचाने की कोशिश की थी, किसी को पता नहीं थी?
अगर स्टेट इस डेटा को लेकर सर्विलान्स करने लगे तब समस्या है कि आपको ब्लैकमेल किया जा सकता है कि आप तो ये कर रहे थे। वैसे ही, डेटा हैकर आपकी निजी जानकारी नहीं चुराते क्योंकि उससे उनको फायदा नहीं। वो बैंक से आपके क्रेडिट कार्ड की जानकारी चुरा लेते हैं। वो आपके फोन से नग्न तस्वीरें चुरा लेते हैं कि वो आपको ब्लैकमेल कर सकें।
लेकिन आम कम्पनियाँ अगर ये डेटा इकट्ठा भी कर लें तो भी वो इसे ब्लैकमेल करने के लिए उपयोग नहीं कर सकते। करेंगे तो उनकी साख जाएगी, केस चलेगा और बिज़नेस ख़त्म हो जाएगा। फ़ेसबुक के शेयर्स की वैल्यू कितनी गिर गई पता कर लीजिए।
ये एक अजीब विरोधाभास है जब आप ये कहते पाए जाते हैं कि डेटा सुरक्षित नहीं है, सरकार एकत्र कर रही हैं ब्ला ब्ला ब्ला। मीडिया वाले तो स्टूडियो से डेमोग्राफिक डेटा एनालाइज़ करके आपको उस तरह की ख़बरें और चर्चाएँ परोसते हैं। वो भी तो आपको, आपकी इजाज़त के बिना, प्रभावित कर रहे हैं।
फिर आपका डेटा उपलब्ध है, आपको फ़्री की सर्विस भी लेनी है, तो कम से कम आप प्राइवेसी का रोना तो मत रोइए कि हमारे डेटा का उपयोग चुनावों में प्रोफाइल तैयार करके हमें प्रभावित करने के लिए किया जाता है। ये सब कोरी गप्पबाज़ी है।
सरकार बताती रहती है कि इन बयालीस एप्प का प्रयोग न करें लेकिन क्या आप ये कह सकते हैं कि आपके फोन में यूसी, वीचैट, सी क्लीनर जैसे एप्स नहीं हैं? हर स्मार्ट फोन एक तरह से कॉम्प्रोमाइज़्ड है। एँड्रायड तो बहुत ज़्यादा ही। इसलिए ये शोर बेकार का है। हाँ, आपको कोई ब्लैकमेल कर रहा हो तो शिकायत ज़रूर करें।

Thursday, March 22, 2018

Green BFF

Green BFF hacker security test on Facebook is actually Fake News

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As fake news continues to thrive online, rumours about typing BFF on your Facebook to test if your account is secure from hackers or not is actually a hoax, a lie, a fraud. It is fake news at its best (or in this case, the worst). Turns out, this is actually a Facebook feature called Text Delightwhich automatically animates green and red hands giving a high five when published. It also animates when you click on it. It does not mean that your Facebook account can be hacked or is secure.
However, there is some grain of truth to it as Text Delight may not work if you haven't updated your Facebook app or Internet browser, so you would be less secure and easier to hack than those who have updated. But, even if Text Delight does work, it does not mean your Facebook account cannot be hacked, as this relies more on your security and privacy settings.
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Now that you know this is actually a Facebook feature, Text Delight actually has other text animations as well, including:
  • Best Wishes
  • Congratulations
  • You Got This
Try them out on your Facebook wall or page yourself but you can also check out the Spade Design site for more details on how to use Facebook Text Delight. 

Wednesday, March 21, 2018

उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान: भारतीय संगीत का संत कबीर

जन्मतिथि विशेष: 

उस्ताद ऐसे बनारसी थे जो गंगा में वज़ू करके नमाज़ पढ़ते थे और सरस्वती को याद कर शहनाई की तान छेड़ते थे. इस्लाम के ऐसे पैरोकार थे जो अपने मज़हब में संगीत के हराम होने के सवाल पर हंसकर कहते थे, ‘क्या हुआ इस्लाम में संगीत की मनाही है, क़ुरान की शुरुआत तो ‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती है.’

उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान (जन्म: 21 मार्च 1916, अवसान: 21 अगस्त 2006 ) (फोटो साभार: यूट्यूब)

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू गंगा नदी को ‘भारत की संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक’ मानते थे. बचपन से अपने लगाव और अपने देशवासियों की प्रिय गंगा और मेहनतकशों की धरती से अपने अनन्य प्रेम के चलते उन्होंने अपनी वसीयत में, अपने अनीश्वरवादी और प्रगतिशील नजरिये के साथ, यह इच्छा ज़ाहिर की थी कि जब उनका देहांत हो तो उनकी राख का एक हिस्सा गंगा में प्रवाहित कर दिया जाए जो कि भारत के दामन को छूती हुई उस समुंदर में जा मिले जो हिंदुस्तान को घेरे हुए है और बाक़ी हिस्से को विमान से ले जाकर उन खेतों पर बिखेर दिया जाए जहां भारत के किसान मेहनत करते हैं ताकि वह भारत की मिट्टी में मिल जाए.

हिंदुस्तान की जीवनरेखा गंगा, अपने मादर-ए-वतन और इसकी आस्थाओं से इसी किस्म का प्यार करने वाली एक और महान हस्ती को आज याद करने का दिन है और वे हैं शहनाई के सरताज उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान.

एक घटना का जगह-जगह ज़िक्र मिलता है कि एक बार उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान शिकागो विश्वविद्यालय में संगीत सिखाने के लिए गए थे. विश्वविद्यालय ने पेशकश की कि अगर उस्ताद वहीं पर रुक जाएं तो वहां पर उनके आसपास बनारस जैसा माहौल दिया जाएगा, वे चाहें तो अपने करीबी लोगों को भी शिकागो बुला सकते हैं, वहां पर समुचित व्यवस्था कर दी जाएगी. लेकिन ख़ान साहब ने टका सा जवाब दिया कि ‘ये तो सब कर लोगे मियां! लेकिन मेरी गंगा कहां से लाओगे?’

उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान भारतीय शास्त्रीय संगीत की वह हस्ती हैं, जो बनारस के लोक सुर को शास्त्रीय संगीत के साथ घोलकर अपनी शहनाई की स्वर लहरियों के साथ गंगा की सीढ़ियों, मंदिर के नौबतख़ानों से गुंजाते हुए न सिर्फ आज़ाद भारत के पहले राष्ट्रीय महोत्सव में राजधानी दिल्ली तक लेकर आए, बल्कि सरहदों को लांघकर उसे दुनिया भर में अमर कर दिया. इस तरह मंदिरों, विवाह समारोहों और जनाजों में बजने वाली शहनाई अंतरराष्ट्रीय कला मंचों पर गूंजने लगी.

वरिष्ठ पत्रकार रेहान फ़ज़ल लिखते हैं, ‘1947 में जब भारत आज़ाद होने को हुआ जो जवाहरलाल नेहरू का मन हुआ कि इस मौके पर बिस्मिल्लाह ख़ान शहनाई बजाएं. स्वतंत्रता दिवस समारोह का इंतज़ाम देख रहे संयुक्त सचिव बदरुद्दीन तैयबजी को ये ज़िम्मेदारी दी गई कि वो ख़ान साहब को ढूंढें और उन्हें दिल्ली आने के लिए आमंत्रित करें… उन्हें हवाई जहाज़ से दिल्ली लाया गया और सुजान सिंह पार्क में राजकीय अतिथि के तौर पर ठहराया गया… बिस्मिल्लाह इस अवसर पर शहनाई बजाने का मौका मिलने पर उत्साहित ज़रूर थे, लेकिन उन्होंने पंडित नेहरू से कहा कि वो लाल किले पर चलते हुए शहनाई नहीं बजा पाएंगे.

नेहरू ने उनसे कहा, ‘आप लाल किले पर एक साधारण कलाकार की तरह नहीं चलेंगे. आप आगे चलेंगे. आपके पीछे मैं और पूरा देश चलेगा.’ बिस्मिल्लाह ख़ान और उनके साथियों ने राग काफ़ी बजाकर आज़ादी की उस सुबह का स्वागत किया. 1997 में जब आज़ादी की पचासवीं सालगिरह मनाई गई तो बिस्मिल्लाह ख़ान को लाल किले की प्राचीर से शहनाई बजाने के लिए फिर आमंत्रित किया गया.’

1947 में आज़ादी के समारोह के अलावा उन्होंने पहले गणतंत्र दिवस 26 जनवरी, 1950 को भी लालकिले की प्राचीर से शहनाई वादन किया था. इसी के साथ यह सिलसिला शुरू हुआ कि उस्ताद की शहनाई हर साल भारत के स्वतंत्रता दिवस पर होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम का हिस्सा बन गई. प्रधानमंत्री के भाषण के बाद दूरदर्शन पर उनकी शहनाई का प्रसारण होता था.

बिहार के डुमरांव में 21 मार्च, 1916 को जन्मे उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान बचपन में अपने मामू अलीबख़्श के यहां बनारस किताबी तालीम हासिल करने आए थे, जहां वे अपनी आख़िरी दिनों की ‘बेग़म’ यानी शहनाई से दिल लगा बैठे.

कहते हैं कि वे अपनी शहनाई को ही अपनी बेग़म कहते थे. उस्ताद का बचपन का नाम कमरुद्दीन था. उनके वालिद पैगंबरबख़्श ख़ान उर्फ़ बचई मियां राजा भोजपुर के दरबार में शहनाई बजाते थे और उनके मामू अलीबख़्श साब बनारस के बालाजी मंदिर में शहनाई बजाते थे.

बालाजी मंदिर में ही रियाज़ करने वाले मामू के हाथ से नन्हें उस्ताद से जो शहनाई थामी तो ताउम्र ऐसी तान छेड़ते रहे जिसने ख़ुद उन्हें और उनकी बनारसी ठसक भरे संगीत को शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया.
सितार वादक विलायत ख़ान (दाएं) के साथ बिस्मिल्लाह ख़ान (फोटो साभार: NET)

आज के हिंदुस्तान में बिरला ही कोई होगा, जिसने धर्मनिरपेक्ष भारत के शिल्पकार नेहरू को देखा होगा, लेकिन हममें से बहुत लोग ऐसे हैं जिन्होंने धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक बन चुके उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान को देखा होगा, जिन्होंने 2006 में बनारस के संकटमोचन मंदिर पर आतंकी हमले का सबसे पहले न सिर्फ विरोध किया बल्कि गंगा के किनारे जाकर शांति और अमन के लिए शहनाई बजाई.

गांधी की हत्या के करीब छह दशक बाद गंगा के तट पर उस्ताद की शहनाई ने मंदिर पर हमले के विरोध में महात्मा गांधी का प्रिय भजन गाया- रघुपति राघव राजा राम…

बनारस में बम धमाके जैसे ‘शैतानी कृत्य’ से आहत बिस्मिल्लाह के भीतर का कलाकार अपने अंदाज़ में यही प्रतिक्रिया दे सकता था. उन्होंने गांधी का युग देखा था, आज़ादी के पहले जश्न में पंडित नेहरू के साथ शिरकत की थी और अब जब मुद्दतों बाद अपने उस हिंदुस्तान में मज़हबी फसादात के गवाह बन रहे थे तो उन्हें महात्मा गांधी याद आ रहे थे.

उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान ऐसे मुसलमान थे जो सरस्वती की पूजा करते थे. वे ऐसे पांच वक्त के नमाज़ी थे जो संगीत को ईश्वर की साधना मानते थे और जिनकी शहनाई की गूंज के साथ बाबा विश्वनाथ मंदिर के कपाट खुलते थे.

वे ऐसे बनारसी थे जो गंगा, संकटमोचन और बालाजी मंदिर के बिना अपनी ज़िंदगी की कल्पना नहीं कर सकते थे. वे ऐसे अंतरराष्ट्रीय संगीत साधक थे जो बनारसी कजरी, चैती, ठुमरी और अपनी भाषाई ठसक को नहीं छोड़ सकते थे.

वे ऐसे बनारसी थे जो गंगा में वज़ू करके नमाज पढ़ते थे और सरस्वती का स्मरण करके शहनाई की तान छेड़ते थे. वे इस्लाम के ऐसे पैरोकार थे जो अपने मजहब में संगीत के हराम होने के सवाल पर हंस कर कह देते थे, ‘क्या हुआ इस्लाम में संगीत की मनाही है, क़ुरान की शुरुआत तो ‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती है.’

उस्ताद बिस्मिल्लाह भारतीय की ऐसी प्रतिमूर्ति लगते हैं, जिनकी रग-रग भारत की विविधताओं से मिलकर बनी दिखती है. उन्हें देखकर ऐसा महसूस होता है कि तमाम मजहब, आस्थाएं, देवी, देवता, ख़ुदा, नदी, पहाड़, लोक, भाषा, शैली, विचार, कला, साहित्य, संगीत, साधना, साज़, नमाज और पूजा सब मिलाकर कोई पहाड़ जैसी शख़्सियत बनती है, जिसे उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान के नाम से पहचाना जाता है. यही पहचान तो हिंदुस्तान की है.

शहनाई को नौबतख़ानों से बाहर निकालकर वैश्विक मंच पर पहुंचाने वाले ख़ान साब ऐसे कलाकार थे जिन्हें भारत के सभी नागरिक सम्मानों पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण और भारत रत्न से सम्मानित किया गया.

इसके अलावा उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और ईरान के राष्ट्रीय पुरस्कार समेत कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले थे. उन्हें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय से मानद उपाधियां भी हासिल थीं. ख़ान साब भारतीय संगीत की ऐसी शख़्सियत हैं, जिन पर आधा दर्जन से ज़्यादा महत्वपूर्ण किताबें लिखी गई हैं.

बिस्मिल्लाह पर किताब लिखने वाले मुरली मनोहर श्रीवास्तव लिखते हैं, ‘बिस्मिल्लाह ख़ान सच्चे, सीधे-साधे और ख़ुदा में आस्था और मंदिरों में विश्वास रखने वाले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने मामूली सी चटाई से बड़े मंचों तक कीर्तिमान स्थापित किया. शहनाई के स्वरों द्वारा कर्बला के दर्द को लोगों के समक्ष प्रस्तुत करते तो हजरत इमाम हुसैन की शहादत का दृश्य जीवंत हो उठता और मोहर्रम की मातमी धुन सुनने वाले रो उठते थे.’

दिसंबर, 2016 में उनकी पांच शहनाइयां चोरी हो गई थीं. इनमें से चार शहनाइयां चांदी की थीं. इनमें से एक शहनाई पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने उस्ताद को भेंट में दी थी. इसके अलावा एक शहनाई पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल, एक राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और अन्य दो उनके शिष्य शैलेष भागवत और एक आधी चांदी से जड़ी शहनाई खां साहब के उस्ताद और मामा अली बक्श साहब ने उन्हें उपहार में दी थीं.

इस चोरी के बारे में बाद में खुलासा किया गया कि उन्हीं के पोते नज़र-ए-आलम उर्फ़ शादाब ने चुराकर एक सर्राफ को बेच दी थीं. पुलिस ने शहनाइयों की जगह गलाई हुई चांदी बरामद की.

जिस तरह उस्ताद के वारिसों ने उनकी शहनाई तक बेच खाई, उसी तरह उन्हें भारत रत्न घोषित करने वाली भारत की सरकार ने भी उन्हें मरणोपरांत उपेक्षा अता की. उनके पैतृक गांव डुमरांव से लेकर बनारस उनके नाम पर कहीं कोई संग्रहालय आदि नहीं बनवाया जा सका. यहां तक कि उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान की कब्र पर बन रही मजार भी अब तक अधूरी पड़ी है.

पत्रकार रवीश कुमार ने 2014 में उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान ने नाम लिखे एक पत्र में दर्ज किया, ‘…जिस बनारस का आप क़िस्सा सुनाते रहे, उसी बनारस में आप एक क़िस्सा हैं. लेकिन उसी बनारस में दस साल में भी आपकी मज़ार पूरी नहीं हो सकी. एक तस्वीर है और घेरा ताकि पता चले कि जिसकी शहनाई से आज भी हिंदुस्तान का एक हिस्सा जागता है, वो यहां सो रहा है. मज़ार के पास खड़े एक शख़्स ने बताया कि आपकी मज़ार इसलिए कच्ची है, क्योंकि इस जगह को लेकर शिया और सुन्नी में विवाद है. मुक़दमा चल रहा है. फ़ैसला आ जाए तो आज बना दें.’

वे आगे लिखते हैं, ‘ये आपकी नहीं इस मुल्क की बदनसीबी है कि आपको एक अदद क़ब्र भी नसीब नहीं हुई. इसके लिए भी किसी जज की क़लम का इंतज़ार है. हम किसलिए किसी को भारत रत्न देते हैं. क्या शिया और सुन्नी आपकी शहनाई में नहीं हैं. क्या वो दो गज ज़मीन आपके नाम पर नहीं छोड़ सकते. क्या बनारस आपके लिए पहल नहीं कर सकता. किस बात का बनारस के लोग बनारस-बनारस गाते फिरते हैं!’

उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान भारतीय संगीत जगत के संत कबीर थे, जिनके लिए मंदिर मस्जिद और हिंदू-मुसलमान का फ़र्क मिट गया था. उनके लिए ‘संगीत के सुर भी एक थे और ईश्वर भी.’

कहते हैं कि संत कबीर का देहांत हुआ तो हिंदू और मुसलमानों में उनके पार्थिव शरीर के लिए झगड़ा हो गया था, लेकिन जब उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान का देहांत हुआ तो हिंदू और मुसलमानों का हुजूम उमड़ पड़ा. शहनाई की धुनों के बीच एक तरफ मुसलमान फातिहा पढ़ रहे थे तो दूसरी तरफ हिंदू सुंदरकांड का पाठ कर रहे थे.

जैसे उनकी शहनाई मंदिरों से लेकर दरगाहों तक गूंजती थी, वैसे ही उस्ताद बिस्मिल्लाह मंदिरों से लेकर लालकिले तक गूंजते हुए 21 अगस्त, 2006 को इस दुनिया से रुख़्सत हो गए.

Saturday, March 3, 2018

‘टाइम्स अप’: दोस्ती, सेक्सटिंग, सेक्स, सेक्सुअल फ़ेवर्स और विक्टिमहुड

दिल्ली की पोएट्री सर्किट में एक बवाल आया हुआ है। 14 पुरुष कवियों के स्क्रीनशॉट और उनके कथित तौर पर ‘व्यभिचारी’ होने के ‘सबूत’ बहुत मशक़्क़त के बाद एक ब्लॉग पर चिपका दिए गए हैं।
बात ये है कि बेचारे पुरुष हैं, तो चरित्रहीन तो पहले ही हो गए। मुझे ‘मी टू’ और ‘टाइम्स अप’ कैम्पेन वालों से एक ही बुनियादी मतभेद है कि सारी लड़कियों को सीधी इम्यूनिटी देकर, विक्टिम मानकर बात आगे बढ़ा दी गई। इसमें ये मानना भी ज़रूरी है कि कुछ लोग अपने बॉडी का उपयोग ‘फेवर्स’ के लिए करते होंगे।
ये आम बात है, जो कि मैंने अपने करियर में देखा है कि कई लड़कियाँ अपने तरीक़े से, और लड़के अपने तरीक़े से, बॉस की चाटते रहते हैं। उन्हें लगता है कि प्रमोशन का, इन्क्रीमेंट पाने का ये एक शॉर्टकट है। और वो सफल भी होते हैं।
वैसे ही ‘मी टू’ वाले में, शक्तिहीन लड़कियाँ नहीं हैं सारी। वहाँ वैसी भी लड़कियाँ हैं जिन्होंने सेक्सुअल फ़ेवर को एक ट्रांजेक्शन की तरह इस्तेमाल किया अपने करियर में आगे बढ़ने के लिए। क्योंकि आपको सीधे रास्ते से सफलता नहीं मिल रही थी, तो आपने अपने होश में, ये तय किया कि फ़लाँ प्रोड्यूसर के साथ सोने से आपको वो हासिल हो सकता है।
कुछ घटनाएँ ऐसी पढ़ीं हैं जिसमें मर्दों ने ज़बरदस्ती भी किया है। उनसे मुझे कोई समस्या नहीं है। ये एक अपराध है, और उसके विरोध में बोलना चाहिए। लेकिन इसकी आड़ में वो तमाम रिश्ते ग़ैरक़ानूनी और ‘बलात्कार’ जैसे नहीं कहे जा सकते जहाँ सेक्सुअल फ़ेवर ‘देना’ एक ट्रान्जेक्शन की तरह इस्तेमाल हुआ था।
पोएट्री सर्किट को मैं बेकार मानता रहा हूँ और कभी जाता नहीं। वहाँ की कविताएँ यूट्यूब पर डीके ने ज़बरदस्ती सुनवाई हैं, लगभग अस्सी प्रतिशत वाहियात होती हैं जिसमें सिगरेट, शराब और नॉस्टैल्जिया के अलावा कुछ नहीं होता। ये बात भी है कि कुछ लोग कविता सिर्फ ‘नोटिस’ होने के लिए पढ़ने जाते हैं। सामने वाले की समझ भी उसी स्तर की होती है तो सड़ी हुई कविता पढ़ने वाला ‘कवि’ रिलेशनशिप भी ढूँढने लगता है।
आज जो चौदह नाम आए हैं, मैं उनमें से किसी को भी नहीं जानता। मैंने कई स्क्रीनशॉट्स पढ़े। लिखने वाले ने कहा है कि उन्होंने बहुत मेहनत की इसे जुटाने में, बहुत हिम्मत की ज़रूरत पड़ी। हलाँकि इन सब में लड़कियों की तरफ के स्क्रीनशॉट्स तो हैं, लड़कों के गायब हैं। शायद इतनी मेहनत की ज़रूरत नहीं पड़ी होगी।
वाहियात कवियों की एक और बात है, जो कि इस पूरे प्रकरण का हिस्सा होती है, कि वो शराब और गाँजा पीते हैं। ये पीना आजकल ‘हैप’ माना जाता है, और कविता करने के लिए ज़रूरी भी। इसके कारण ऐसे वाक़ये भी सामने आते हैं जहाँ लड़की ये कहकर निकल लेती है कि उसके साथ ‘नशे में’ ये कर दिया गया।
मेरा सीधा सवाल ये है कि क्या आप भजन संध्या में गई थीं जहाँ गाँजा की गंध आपको अगरबत्ती जैसी लग रही थी? क्या आपको पता नहीं सेक्सुअल प्रीडेटर्स हर जगह घूम रहे हैं, और नशा करना इसमें खुद को उतारने जैसा है? आप ‘मैं उसे दोस्त समझकर वहाँ चली गई’ कहकर मत बचिए। दोस्त समझकर जाती हैं, तो वहाँ आपको अपनी सुरक्षा का अहसास होना चाहिए।
आप आज के सड़े हुए समय में लड़कों की पार्टी में जाती हैं, आप किसी को बताती नहीं, और फिर वहाँ कुछ होता है तो पूरी ज़िम्मेदारी सिर्फ लड़के की नहीं है। नशे में आपका होश खो जाता है कि आप उसे अपने ऊपर ‘ड्राय हम्प’ से लेकर ‘सेक्स’ करने तक का मौक़ा दे देती हैं, तो फिर वो भी तो यही कह सकता है कि ‘नशे में पता नहीं चला’! ऐसा किसी शोध में पता नहीं चला है कि नशे में लड़के और लड़कियों के होश खोने के क्लेम में लड़की सही है, लड़का गलत।
मैं ये नहीं मानता कि लड़के ऐसा नहीं करते। मैं ये बहुत विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि लड़कियों को ऐसे ही ट्रैप किया जाता है। दोस्ती बढ़ाने के बहाने बलात्कार भी होते हैं। इसके लिए कानून हैं, हर किलोमीटर पर पुलिस थाने हैं, महिला हेल्पलाइन है। आपको उसी वक़्त कम्प्लेन करने से किसने रोका है? क्या आपको लगता है कि आपके उठाए गए सवालों का जवाब अब, तीन साल बाद, किसी भी हालत में दिया जा सकता है?
क्या ये साबित हो सकता है कि फ़लाँ लड़की के साथ में दिसम्बर 2015 की रात सेक्स किया था, और वो उसकी सहमति के बग़ैर था? आप ऐसा लिखकर लड़के का चरित्र बर्बाद कर रही हैं, और विक्टिम बन रही हैं। एक अशक्त लड़की, जिसे कानून का ज्ञान न हो, जो मानसिक रूप से अपने निर्णय लेने में सक्षम न हो, जो ऐसी जगह पर हो जहाँ इन बातों को दबा दिया जाता है, जहाँ उसके पास कम्यूनिकेशन आदि के साधन नहीं है, वो अगर दस-बीस-पचास साल बाद भी बोल रही है तो समझ में आता है कि वो उस वक़्त ऐसी स्थिति में नहीं थी।
उसी कड़ी में, सेक्सटिंग के स्क्रीनशॉट लगाने वालों से एक आग्रह ये है कि अगर आपने कुछ समय तक ऐसा किया है, तो फिर इसमें दोनों की ग़लती है, या दोनों की ग़लती नहीं है। आप एक तरफ से ‘फेवरेवल’ जवाब भी दे रही हैं, और दूसरी तरफ सात महीने बाद कह रही हैं कि ‘मुझे तो वो गंदे मैसेज भेजता है’, तो नहीं चलेगा। हाँ, आपने पहली बार कुछ किया, और फिर बाद में ये सीधे तौर पर कह दिया कि ‘मुझे ये अब नहीं करना’।
अगर सामने वाला फिर भी पिछली बातों के आधार पर गंदे मैसेज भेजता है तो वो दोषी है। लेकिन, इसे भी आप तभी क़ानूनी सहायता लेकर तात्कालिक तौर पर ही निपटा दें। मैं जानता हूँ कि आपको लगता होगा कि दोस्त है, पुलिस में जाना गलत होगा, उसका करियर चौपट हो सकता है। लेकिन आपकी इज़्ज़त के सामने किसी का करियर भारी नहीं है।
आप उसको बता दें कि अगले मैसेज को आप फ़ॉरवर्ड कर देंगी पुलिस को, या उसका नंबर दे देंगी। सुधरने वाला, दोस्ती का लिहाज़ करते हुए, इतनें में सुधर जाएगा। एक बात और ध्यान में रखें कि सेक्सटिंग करना गलत नहीं है, लेकिन एक बार करने के बाद आप किसी के साथ ‘सिर्फ़ दोस्त’ बनकर रहने की सोच रही हैं तो ये तर्कसंगत नहीं है। सब ख़त्म कीजिए और दूर रहिए ऐसे लोगों से।
आदर्श स्थिति एक तरफ लेकिन इस तरह के मामलों में जहाँ घर की पार्टी में आए लोगों के साथ कथित तौर पर एक तरह से बलात्कार हो जाता है, और सुबह आपको लगता है कि नशे में ये सब हो गया, जबकि सेक्स के वक़्त आप जगी हुई थीं, तो इसकी आधी ज़िम्मेदारी आपकी है। लड़का ही दोषी नहीं है। आपके विश्वास को उसने तोड़ा, क्योंकि आपने उसे तोड़ने दिया। साथ ही, अगर आप उसी सुबह पुलिस के पास जाती हैं, तो कानून को इतना समय मिलता है कि वो तब के तथ्यों के आधार पर आपको न्याय दिलाए।
जब आप खुद ही आधी गलत हैं, तो आपके मन का चोर तीन साल बाद जो भी करेगा, उसका पूरा ठीकरा किसी लड़के के ऊपर फोड़ना आपकी मंशा पर सवाल उठाता है। कोई भी पढ़ी-लिखी लड़की, इस तरह के मामलों में, इतने समय बीतने के बाद अगर किसी के चरित्र पर सवाल उठाती है, तो आधा गुनाह उसके हिस्से भी है। चूँकि हम ऐसे समाज में रहते हैं जहाँ लड़कियों के साथ छेड़-छाड़ और बलात्कार बहुत ही आम है, और लड़कों पर सवाल उठते ही वो दोषी मान लिए जाते हैं, तो इतना समय लेना गलत है।
जो लड़कियाँ कविता लिखती हैं, तरह-तरह का नशा करती हैं (जो कि कई मामलों में ग़ैरक़ानूनी है), वयस्क हैं, सोच-समझ सकती हैं, वो किसी भी ऐसी घटना के होने के बाद, वो भी आज के समय में जहाँ लड़कियों के लिए तमाम हेल्पलाइन आदि उपलब्ध हैं, आपको ये बोलने के लिए इकट्ठा होना पड़ता है कि आपके साथ गलत हुआ?
मैं ‘मी टू’ और ‘टाइम्स अप’ के दौर में सिर्फ उन महिलाओं के साथ हूँ जो अक्षम थीं, जिनके पास क़ानूनी सहायता का कोई विकल्प न था, जिन्हें क़ैद करके रखा गया, जिनके साथ ज़बरदस्ती हुई और पुलिस या समाज ने उन्हें चुप कर दिया। जो लड़कियाँ सक्षम हैं, जिनके घर के पास पुलिस स्टेशन हैं, जो पढ़ और लिख सकती हैं, जिनका एक सपोर्ट सिस्टम है, वो तीन साल बाद ये कहते नज़र आएँ कि फ़लाँ रात को ‘मेरी छाती पर उसने गलत तरीक़े से हाथ चलाया था’ तो मुझे मंशा पर संदेह होता है।
अब मेरे इस लेख पर जो झंडू टाइप के सवाल उठेंगे उनका भी जवाब पहले ही दे देता हूँ: 
1. क्या लड़कियों का नशा करना गलत है? जी हाँ, नशा करना गलत है, और ग़ैरक़ानूनी भी, और वो लड़का-लड़की सब पर लागू होता है। अगर मैं एक नैतिक स्टैंड न भी लूँ, तो भी चूँकि इस प्रकरण में ‘नशा’ को एक माध्यम बनकर आ रहा है, तो उसको इग्नोर करना बेकार है।
2. क्या लड़कियों को कविताएँ नहीं पढ़नी चाहिए? अगर आपको लगता है कि मेरे लेख का निचोड़ ये है, तो आप अपने आप को माफ कीजिए अपनी मूर्खता के लिए।
3. क्या लड़के कुछ भी करें, लड़कियाँ चुप रहें? जी नहीं, लड़के जब भी, जो भी करें, आप कानून की मदद लीजिए। चूँकि इन मामलों में चरित्र हनन लगभग इन्सटैंटली हो जाता है, तो दो साल बाद विक्टिम बनने से बेहतर है कि आप अपने सारे विकल्प उसी वक़्त तलाश लें।
4. दोस्ती के बहाने लड़के फ़ायदा क्यों उठाते हैं? क्योंकि लड़कों को फ़ायदा उठाने दिया जाता है। आपको आज के दौर में ऐसे चालाक लड़कों की चालाकियों से खुद को बचाना चाहिए। जब आप उसको ट्रस्ट करती हैं, और चैट करती हैं, घर पर बुलाती और जाती हैं, तो फिर ऐसे उपाय कर लिया करें कि बाद में स्क्रीनशॉट लगाने की ज़रूरत न पड़े। दोस्तों को बता दें, परिवार को बता दें, या फिर ‘होश’ में रहें। आपको कोई नशा करा रहा हो, तो न करें। क्योंकि वो एक रास्ता है, बहाना है आपके साथ आपकी एक्सप्लिसिट अनुमति के बग़ैर कुछ भी करने की।

अवनि जी, बाइसन-21 की बधाई, आप हम सबकी आदर्श हैं।

अवनि जी ने कई अवधारणाओं को निरस्त करते हुए बाइसन-21 फ़ाइटर प्लेन को अकेले उड़ाया। अवनि जी, भावना और मोहना जी के साथ उन तीन फ़ाइटर पायलट्स में से एक हैं जिन्हें भारतीय वायु सेना से इसकी ट्रेनिंग मिली। बाकी दो को भी मौक़ा मिलेगा जल्द ही।
ये शुरुआत है, कॉम्बैट के कई क्षेत्र महिलाओं के लिए उतने सहज नहीं हैं जितने पुरुषों के लिए, लेकिन कई जगह उनका होना जरूरी है। स्त्रियों ने पहले भी युद्ध लड़े हैं, कबीलों की रक्षा की है, और आज भी करेंगी। ये भी कहना ज़ायज है कि पहले उनके अनुसार वैसा माहौल तैयार हो। आप कुछ नया करते हैं, जो पहले किसी भी कारण से न हो रहा हो, तो आपको सूरत सुधारनी होती है। ये बात ऐसी नहीं है कि कुछ असाधारण हुआ है। नहीं। महिलाएँ हवाई जहाज उड़ाती रही हैं, और ट्रेनिंग मिलने से फ़ाइटर भी उड़ाएँगी और बम भी गिराएँगीं। समय और परिस्थितियाँ उन्हें उन जगहों पर होने से रोकती रहीं जहाँ वो हो सकती थीं, लेकिन प्राथमिक तौर पर मर्दों को वो करने को मिला। ये एक सत्य है कि बच्चों की देखभाल के लिए दूध माता ही पिलाएगी, पुरुष बोतल ही पकड़ सकते हैं। साथ ही समानता के नाम पर आप बच्चे की परवरिश नहीं खराब कर सकते। और भी कई काम हैं जो उसी तरह से स्त्री बेहतर कर सकती है, जैसे कई काम पुरुष। बराबरी का ये मतलब नहीं होता कि एक एकड़ खेत में महिला भी कुदाल चलाए, और पुरुष भी। 
बराबरी का मतलब है कि हर व्यक्ति को बराबरी का हक़ मिले, अवसर मिलें। अगर कोई महिला वेट लिफ़्टर बनना चाहती हैं तो उसे वो माहौल दिया जाय, ये न कहा जाय कि तुम बच्चे पैदा करो और दूध पिलाओ। बच्चे पैदा करके जो पाल रही हैं, वो तो किसी भी प्रकार से किसी से भी कमतर नहीं हैं। ये उनका निजी चुनाव है, जैसे आपका चुनाव मेरा ये पोस्ट पढ़ना। इतना ही है।
महिलाएँ भी गोली चला सकती हैं, बम बरसा सकती हैं, और बच्चों को प्यार कर सकती हैं, जैसे एक पुरुष करता है। पहले शारीरिक संरचना के कारण, सामाजिक मान्यताओं और परिस्थितियों के कारण भी महिलाओं को एक सीमित दायरे में रखा जाता रही। पीरियड्स के लिए उतने बेहतर साधन नहीं थे, तो कई जगह इस कारण उन्हें वहाँ होने से रोका गया। आप युद्ध में इसको कैसे क़ाबू में करेंगे? अब साधन उपलब्ध हैं, तो वो इन्सास लेकर भी कूदेगी किसी दिन सीमा पर। समाजिक परिस्थितियों की बात करें तो हमें ये मानना चाहिए कि भले वो गलत रहे हों, पर वो थे। इस कारण भी महिलाओं को देर लग गई कई जगहों पर। 
मुझे तो बहुत खुशी होती है ऐसे मौक़ों पर कि एक जगह और आई। बस दो-चार बम और मार देती पाकिस्तान पर तो मज़ा आ जाता। लेकिन अभी तो युवा हैं, ऐसे मौक़े ज़रूर मिलेंगे। वैसे युद्ध न हो तो बेहतर है लेकिन एकाध सर्जिकल स्ट्राइक में ही चली जाएँ तो क्या बुरा है! 
तीनों बहनों को सलाम, आपको एक एक्सट्रा! राफ़ेल आ जाए तो उसको उड़ाइएगा, तब हम आप तीनों का पोस्टर रूम में लगा लेंगे।