Monday, December 10, 2012

खुश रहने का सूत्र

माफ कीजिएगा, आप खुश होना ही नहीं चाहते. आपको तो बस चिकचिक-किचकिच करना है. क्या कहा! आप खुश होना चाहते हैं. मगर कैसे? आपके 'कैसे' का उत्तर मैं दिए देता हूं. ऐसा सूत्र देता हूं कि मन प्रसन्न और आप सन्न रह जाएंगे. आपको खुश रहने के लिए ज्यादा कुछ नहीं करना है. बस अपने सोचने के कोण को थोड़ा दायें-बायें, ऊपर-नीचे कर लें. सिंपल है! चलिए, विस्तार से समझाता हूं.
मान लीजिए-आपकी बत्ती गुल हो गई...जी, कहने का मतलब था आपके घर की. और प्रायः जाती है. आप खीझते क्यों है? आप यह सोचिए कि बिजली के जाने से बिजली का बिल कम हो गया. आप कुछ आध्यात्मिक टाइप भी सोच सकते हैं कि चलो आज अंधेरे में स्वयं से साक्षात्कार किया जाए. इस तरह से न जाने कितने तरीके से सोच कर आप बार-बार बिजली जाने से पैदा होने वाली झुंझलाहट से बच सकते हैं.
कुछ और उदाहरण पेश हैं, खुश रहना चाहते हैं, तो कृपया इन्हें भी आजमाकर देखें.
अगर सरकारी नौकरी नहीं मिली तो आप सोचिए कि आप काहिल नहीं हैं. अगर नौकरी प्राइवेट कर रहे हैं तो सोचिए कि आप बेरोजगार नहीं हैं. अगर आप बेरोजगार हैं तो आप सोचिए कि बेगार करने से बच गए. अगर आप बेगार कर रहे हैं तो सोचिए कि आप भूखे मरने से बच गए. अगर आप भूखे मर रहे हैं तो.... तो सोचिए कि आप अकेले नहीं मर रहे इस देश में.
पेट्रोल के दाम बढे़, तो सोचिए कि डीजल के नहीं बढ़े. अगर डीजल के दाम बढ़ जाएं तो सोचिए कि सीएनजी के नहीं बढे़. अगर उसका भी बढ़ जाए तो सोचिए कि साइकिल के दाम तो नहीं बढे़ हैं. अगर साइकिल के दाम बढ़ गए तो सोचिए कि पैदल चलना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है.
बाबू न सुने, तो सोचिए कि ऊंचा सुनता है. अधिकारी न सुने, तो सोचिए कि बहरा है. सरकार न सुने, तो सोचिए उसके कान ही नहीं. नहीं तो आप यह भी सोच सकते हैं कि आपकी आवाज में दम नहीं.  कहने का मतलब यह है कि जिस सोच से या जैसे सोचने से आप खुश हों, वही सोचिए.
अब जो उदाहरण आपके सामने रखने जा रहा हूं, हो सकता है आपको पंसद न आए. यह भी हो सकता है कि आपको तो बहुत पसंद आए, मगर आपकी धर्मपत्नी को कतई पसंद न आए.
अग्रिम माफी के साथ प्रस्तुत है वह उदाहरण- रोटी बनाते वक्त अगर श्रीमती की उंगलियां जल जाए, तो आप यह सोच कर खुश हो सकते हैं कि चलो सिलेंडर नहीं फटा.
तो मित्रो! अपने सोचने के कोण को थोड़ा यहां-वहां खिसकाने का मतलब आप बखूबी समझ गए होंगे. यानी खुश रहना है, तो खुशफहमियां पालें. गलतफहमियों का सहारा लेना छोडें. जब भी किसी विशाल समस्या से साबका पड़े, उसके सामने अपने आप बौने हो जाएं. अपने देश के फलक पर कित्ती समस्याएं कित्ते भी बुरे तरीके से मुंह चिढ़ाएं, आप मुंह बाए देखते रहें. हर हाल में अपने को बहलाइए जितना बहला सकते हैं. बुरा मत मानिएगा, वर्षों से आप यही तो कर रहे हैं. अरे! अरे! आप तो सचमुच बुरा मान गए. सुनिए तो! अच्छा एक बात बताइए, अगर आपने सचमुच समस्या का समाधान, कारण का निदान, स्थितियां बदलनी चाही होती तो आज जो समस्याएं जितनी बुरी तरह से आपको मुंह चिढ़ा रही हैं, क्या वे इतनी बुरी तरह से मुंह चिढ़ाने की हिम्मत करतीं? इस बार जरा 180 डिग्री वाला जवाब यानी सीधा जवाब दिल पर हाथ रख कर दीजिए तो!

‘अंधेरे का लाभ’

बचपन में जब बडे़-बुजुर्ग दूरदर्शन पर समाचार सुनते थे, तो विकल्प के अभाव में हमें भी उन सभी के साथ समाचार देखना पड़ता था. (उस वक्त सिर्फ टीवी देखते रहने का ही बड़ा चार्म था),  हम समाचार क्या सुनते! उस समय अकसर एक खबर सुनकर हम चक्कर में पड़ जाते थे और फौरन सवालों के घाट उतर जाते थे. कहीं कोई हमारी बात सुनकर हंस न दे, इस डर से हम उस खबर से संबंधित सारी जिज्ञासाओं को मन में ही रखते. उधर बडे़-बुर्जुग हमारी मनःस्थिति से बेखबर हो कर खबर सुनने में तल्लीन और इधर हम अंदर ही अंदर उन सवालों के उत्तर खोजने में लीन. उस खबर ने बचपन में ही मुझे बचपना करने पर मजबूर कर मुझे बचकाना चिंतक बना दिया.
वह खबर जानते हैं क्या होती थी? यही, पुलिस मुठभेड़ में दो अपराधी मारे गए और तीन अंधेरे का लाभ उठा कर भाग गए. या एक मारा गया दो अंधेरे का लाभ ले कर रफूचक्कर हो गए. अपराधियों की संख्या कम-बेसी हो सकती थी, मगर यह तय था कि अंधेरे का लाभ अपराधी ही उठा ले जाते थे. हम सोचते थे कि बार-बार हर बार अपराधी ही अंधेरे का लाभ क्यों और कैसे ले जाते है? अपराधियों की संख्या पुलिस वालों के मुकाबले कम होती है, फिर भी पट्ठे अंधेरे का लाभ ले लेते हैं?  क्या अंधेरा पुलिसवालों के साथ पक्षपात करता है?
समाचार वाचक या वाचिका अपना काम तो कर जाता था. उसे तो बस खबर सुनाना होता था, सुना जाता था. मगर यह खबर सुन कर हमारी नींद उड़ जाती थी. सोचते थे कि जब पुलिस भी मानव (उस वक्त यही सोचते थे) और अपराधी भी आदम जात के, तो अंधेरे का लाभ लेने में इतना एकपक्षीय-एकतरफा परिणाम क्यों? क्या पुलिसवालों की आंखें कमजोर होती हैं? (और तो और सारे पुलिसवालों की!) कभी-कभी सोचता था कि हो न हो अपराधी वही बनता होगा जो, अंधेरे का लाभ उठाने का जन्मजात एक्सपर्ट होता होगा!
उस वक्त क्या-क्या सोचते थे, क्या बताएं! कभी हम यह सोचते, हो न हो अपराध की दुनिया में वही जाते हैं जिनकी नजरें तेज होती हैं और पुलिस में वे जाते हैं, जो कमनजरी के शिकार होते हैं. न समाचार सुनते न ऐसे सवालों में हमारी नन्ही-सी जान फंसती. वैसे भी बचपन में समाचार सुनने का क्या तुक? फिर भी हम सुनते थे, इस उम्मीद से कि शायद इस बार हमें यह खबर सुनने को मिले कि मुठभेड़ में पुलिस ने सारे अपराधियों को मार गिराया. इस बार अपराधी लोग अंधेरे का लाभ नहीं उठा पाए, क्योंकि इस बार अंधियारे का लाभ पुलिस ने उठा लिया. लेकिन ऐसी खबर हमारे बड़े होने पर अब तक न सुनी, उस वक्त क्या सुनते, जब हम छोटे थे!
जितने सवाल ऊपर लिखे हैं, उससे ज्यादा हमारे मन में आते थे. अब तो कई सारे सवालों को भूल गया. माना, उस वक्त हम बच्चे थे, दिल-दिमाग से थोड़े कच्चे थे. मगर आज भी जब हम यह खबर पढ़ते-सुनते हैं, तो बड़ी मौज आती है. न चाहते हुए भी हमारे अधरों पर मुस्कान आ ही जाती है. इतनी हृदय विदारक खबर पर भी हंसी! हंसी खबर पर नहीं, बल्कि खबर की उस प्रकृति पर आती है, जिसने बरसों से अपने चाल-चलन को रत्ती भर नहीं बदला. आज जब इतनी एडवांस तकनीकें आ गई हों, ऐसे में भी अपराधी अंधेरे का लाभ उठाने में सफल हो जाते हैं और पुलिस जो बरसों से इस मोर्चे पर असफल होती आ रही है, एक बार फिर असफल हो जाती है.
 बचपन में ऐसे सवालों के भंवर में फंसने का कारण हमारा बचपना था इसलिए जो खबर में दिखाया-सुनाया जाता था, उसे हम सच मान बैठते थे. हम यह नहीं समझ पाते थे कि हमें अंधेरे में रख कर वास्तव में अंधेरे का वास्तविक लाभ कौन उठा रहा है.

Pari Suthar








ओस की बुदं की तरह होती है बेटिया
स्पर्श खुरदरा हो तो रोती है बेटिया

रोशन करेगा बेटा एक कुल को
दो दो कुलो की लाज होती है बेटिया

कोई नही है दोस्तो एक दुसरे से कम
हीरा है अगर बेटा तो,माती होती है बेटिया

भले ही लाखो कमाते हो,पर माँ पिता से ज्यादा नही
गर भूल जाए बेटा माँ पिता को तो
बुढ़ापे मे सहारा देती हैं बेटिया

तो फिर क्यो बेटी को मारते हो
'सुथार' क्यो नही उसे सॅंवारते हो
यही विधी का विधान हैं यही दुनिया की रीत हैं
मुठी में भरे नीर सी होती हैं बेटिया

क्यों बेटियाँ बोझ होती है ???

 

क़त्ल करना है तो सबका करो
मुझ अकेली को मारने से क्या होगा
अगर मिटाना है मेरी हस्ती को
तो सबको मिटाओ …………..
मुझ अकेली को मिटाने से क्या होगा …………..


हूँ गुनहगार अगर मैं दादी
तो दोषी तो आप भी है
सजा देनी है तो खुद को भी दो
मुझ अकेली को देने से क्या होगा …………………


किया होता अगर ऐसा हीदादी के पापा ने दादी के साथतो क्या आज आप होते पापाजरा सोच कर तो देखिये …………………मेरे इस नन्हे से जिस्म के टुकडो कोजो रंगे हुए है खून से ……………..एक छोटी सी सुई चुभ जाती है जब उँगली मेंतो कितना दर्द होता है ……..जानते है न पापा आप ……………………..फिर कैसे …………….फिर कैसे पापाकैसे आपने कर दिया अपने ही अंश कोउन सब के हवाले काटने के लिए ……………एक नन्ही सी जान को मरने के लिएअगर बोझ ही उतरना है …………….तो दादी को, माँ को, बुआ को भी मारोमुझ अकेली को मारने से क्या होगाक़त्ल करना है………………………………..

कितनी आसानी से मान गई आप भी माँ
क्यों —- क्या मैं कोई भी नही थी आपकी
या मज़बूरी थी आपकी भी ……….
भगवान की तरह………………
भगवान जिन्हें मालूम है अपने इंसानों की फितरत
जो जानते है —– इन लालची इंसानों की हैवानियत को
लेकिन फिर भी भेज देते है हमे इस दुनिया में
जिन्दा क़त्ल होने के लिए …………..
बिन जन्मे ही मार दिए जाने के लिए


क्या आप भी ऐसे ही मजबूर थी माँ
या आप भी डर गयी थी दादी और पापा की तरह
कि कही मैं आप पर बोझ न बन जाऊँ
अपने बेटे का पेट तो भर सकते है आप
लेकिन क्या मुझे दो वक़्त की रोटी नही दे पाते
क्या मैं इतना खा लेती माँ …………………….
कि आप लोगो के लिए मुझे पालना मुश्किल हो जाता
क्या मैं सच में बोझ बन जाती माँ
आपके लिए भी ………………
क्या इसीलिए आप सबने मुझे जन्म लेने से पहले ही मार दिया
क्या सच में ही बेटियाँ बोझ होती है माँ
बोलो न माँ ……….क्यों बेटियाँ बोझ होती है !

Wednesday, October 31, 2012

हम झुक नहीं सकते... (अटल बिहारी वाजपेयी)


टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते

सत्य का संघर्ष सत्ता से
न्याय लड़ता निरंकुशता से
अंधेरे ने दी चुनौती है
किरण अंतिम अस्त होती है

दीप निष्ठा का लिये निष्कंप
वज्र टूटे या उठे भूकंप
यह बराबर का नहीं है युद्ध
हम निहत्थे, शत्रु है सन्नद्ध
हर तरह के शस्त्र से है सज्ज
और पशुबल हो उठा निर्लज्ज

किन्तु फिर भी जूझने का प्रण
अंगद ने बढ़ाया चरण
प्राण-पण से करेंगे प्रतिकार
समर्पण की माँग अस्वीकार

दाँव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते

आओ फिर से दिया जलाएँ: अटल बिहारी वाजपेयी



आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ

हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वतर्मान के मोहजाल में-
आने वाला कल न भुलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।

आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज़्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियां गलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ
=====================
अटल बिहारी वाजपेयी

ऐ मेरे वतन के लोगों.........



ऐ मेरे वतन के लोगों, तुम खूब लगा लो नारा
ये शुभ दिन है हम सब का, लहरा लो तिरंगा प्यारा
पर मत भूलो सीमा पर, वीरों ने है प्राण गँवाए
कुछ याद उन्हें भी कर लो, जो लौट के घर न आये

ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आँख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो क़ुरबानी

जब घायल हुआ हिमालय, खतरे में पड़ी आज़ादी
जब तक थी साँस लड़े वो, फिर अपनी लाश बिछा दी
संगीन पे धर कर माथा, सो गये अमर बलिदानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो क़ुरबानी

जब देश में थी दीवाली, वो खेल रहे थे होली
जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली
थे धन्य जवान वो आपने, थी धन्य वो उनकी जवानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो क़ुरबानी

कोई सिख कोई जाट मराठा, कोई गुरखा कोई मदरासी
सरहद पर मरनेवाला, हर वीर था भारतवासी
जो खून गिरा पर्वअत पर, वो खून था हिंदुस्तानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो क़ुरबानी

थी खून से लथ-पथ काया, फिर भी बन्दूक उठाके
दस-दस को एक ने मारा, फिर गिर गये होश गँवा के
जब अन्त-समय आया तो, कह गये के अब मरते हैं
खुश रहना देश के प्यारों, अब हम तो सफ़र करते हैं
क्या लोग थे वो दीवाने, क्या लोग थे वो अभिमानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो क़ुरबानी

तुम भूल न जाओ उनको, इस लिये कही ये कहानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो क़ुरबानी

जय हिन्द... जय हिन्द की सेना
जय हिन्द, जय हिन्द, जय हिन्द

Tuesday, October 23, 2012

मेरी नन्ही सी परी, मेरी प्यारी परी



कभी ठुमक ठुमक, कभी मटक  मटक
वो  सारे घर में चलती  है
कभी पा, कभी पापा , कभी  पापा जी
मुझको हर वक़्त बुलाती रहती है ||
मेरी  नन्ही  सी  परी , मेरी  प्यारी  परी
मुझको   बहुत  प्यार  करती  है
गलती  हो  जाए   गर  उस  से  तो
थोडा  तो,  मुझसे  डरती  है ||
डांट  पड़ती  है  जब  उसको  मुझसे
तो  गंगा  जमुना  उसकी  आँखों  से  बहती  है
रोती  रहती  है  तब  बस  वो
बोल  कर  कुछ  न  कहती  है ||
सांस  ऊपर  की  ऊपर  नीचे  की  नीचे
उसकी  अटकी  रहती  है
चैन  नहीं  तब  तक   पड़ता  उसको
जब  तक  लाड (प्यार ) न  मुझसे  कर  लेती  है
फिर  धीरे – धीरे , वो  होले – होले
मेरी  गोदी  में  सिमटती  जाती  है
फिर  सकूं  मिलने  के  बाद
पहले  सी  चंचल  हो  जाती  है ||
वो  चंचल  परी , वो  नटखट  बड़ी
मेरी  बेटी , मेरी  प्यारी  सी  गुडिया  है
सदा  आशीष  रहे  भगवान्  की  उसपर
बस  यही , मेरी  दुआ   है
हरदम  यही  मेरी  दुआ  है ……

Saturday, October 13, 2012

पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्रीजी की मौत का रहस्य


पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की मौत का रहस्य हमेशा से भारत की जनता के लिए रहस्य ही रहा है। अब यह रहस्य और गहरा गया है। भारत सरकार सुभाषचंद्र बोस और लालबहादुर शास्त्री जैसे महापुरुषों के जीवन को इतना रहस्यमय क्यों मानती है? क्या इसकी वजह यह है कि अगर रहस्य उजागर कर दिए गए तो देश का इतिहास फिर से लिखना पडेगा

लालबहादुर शास्त्री की बेटी सुमन सह के बेटे सिद्धार्थ सह ने जब सूचना के अधिकार के तहत भारत सरकार से शास्त्री जी की मोत के बारे में जानकारी मांगी तो सरकार द्वारा मांगी गई जानकारी को यह कहकर नहीं दिया गया कि अगर दिवंगत शास्त्री की मौत से जुडी जानकारी को सार्वजनिक किया जाएगा, तो इसके कारण विदेशी रिश्तों को नुकसान और देश में गड़बड़ी हो सकती है।............

अब वो गड़बड़ी क्या हो सकती है ??तो पढ़िए ........

10 जनवरी 1966 ! अहम दिन और ऐतिहासिक तारीख ! पाकिस्तान के नापाक इरादों को हिमालय की बर्फ और थार के रेगिस्तान में दफनाने वाले तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने सोवियत संघ की पहल पर एक ऐतिहासिक कारनामे पर अपनी मुहर लगा दी। इसकी चर्चा पूरी दुनिया में फैल चुकी थी। सच मानें तो दुनियाभर के देश अचम्भित नजरों से देख रहे थे। इस अजीम शख्सियत-भारत के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री को! इस सामान्य कद-काठी और दुबली काया वाली शख्सियत में साहस का अटूट माद्दा किस कदर भरा था। इन्होंने देश की बागडोर संभालने में जिस समझदारी और दूरंदेशी वाली सूझ-बूझ का परिचय दिया, वह ऐतिहासिक है। शास्त्रीजी ने अपने जिन फौलादी इरादों से पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी वह पाकिस्तान के लिए कभी न भूलने वाला एक सबक है।शास्त्रीजी की मौत के संबंध में आधिकारिक तौर पर जो जानकारी जनता तक पहुंची है, उसके अनुसार 11 जनवरी, 1966 को दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की मौत दिल का दौरा पडने से उस समय हुई थी, जब वह ताशकंद समझौते के लिए रूस गये थे। पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी ललिता शास्त्री ने आरोप लगाया था कि उनके पति को जहर देकर मारा गया है।

हुआ ये की था की ताशकंद में भारत-पाक समझौता करने के लिए लगभग बाध्य किए गए भारतीय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री को वहां जहर दे कर मारा गया और उसके बाद अपनी सत्ता कायम करने की कवायद शुरू हुई....
शास्त्री जी को जहर दे कर मारने से किसका फायदा होने वाला था ये बात किसी से छिपी नहीं .......इंदिरा गांधी की भारत में राज करने का पागलपन उसे किसी भी हद तक ले जा सकता था और वो इंदिरा ने किया ........

दिवंगत प्रधानमंत्री के पुत्र सुनील शास्त्री ने कहा कि दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री उनके पिता ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लोकप्रिय नेता थे। आज भी वह या उनके परिवार के सदस्य कहीं जाते हैं, तो हमसे उनकी मौत के बारे में सवाल पूछे जाते हैं। लोगों के दिमाग में उनकी रहस्यमय मौत के बारे में संदेह है, जिसे स्पष्ट कर दिया जाए तो अच्छा ही होगा।दिवंगत शास्त्री के पोते सिद्धार्थ सह ने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने देश में गड़बड़ी की आशंका जताकर, जिस तरह से सूचना देने से इंकार किया है, उससे यह मामला और गंभीर हो गया है। उन्होंने कहा कि हम ही नहीं, बल्कि देश की जनता जानना चाहती है कि आखिर उनकी मौत का सच क्या है।

उन्होंने कहा कि यह भी हैरानी की बात है कि जिस ताशकंद समझौते के लिए पूर्व प्रधानमंत्री गए थे, उसकी चर्चा तक क्यों नहीं होती है।

उल्लेखनीय है कि सीआईएज आई ऑन साउथ एशिया के लेखक अनुज धर ने भी सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत सरकार से स्व. शास्त्री की मौत से जु‹डी जानकारी मांगी थी। इस पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने यह कहकर सूचना सार्वजनिक करने से छूट देने की दलील दी है कि अगर दिवंगत शास्त्री की मौत से जुडे दस्तावेज सार्वजनिक किए गए, तो इस कारण विदेशी रिश्तों को नुकसान, देश में गडबडी और संसदीय विशेषाधिकार का हनन हो सकता है।

सरकार ने यह स्वीकार किया है कि सोवियत संघ में दिवंगत नेता का कोई पोस्टमार्टम नहीं कराया गया था, लेकिन उसके पास पूर्व प्रधानमंत्री के निजी डॉक्टर आरएन चुग और रूस के कुछ डॉक्टरों द्वारा की गई चिकित्सकीय जांच की एक रिपोर्ट है। जिसमे कुछ प्रश्न हैं ....

अगर शास्त्री जी को दिल का दोरा पड़ा था तो

भारत के प्रधानमंत्री के होटल के कमरे में फोन या घंटी तक क्यों नहीं थी?

उनके शरीर पर नीले दाग किस चीज के थे?

इस अचानक हुई मौत के बाद शव का पोस्टमार्टम तक क्यों नहीं करवाया गया?


सोवियत संघ से बाद में दोस्ती का तोहफा जो इंदिरा ने लिया वो शास्त्री जी को बलिदान कर के मिला /....

Friday, October 12, 2012

सैनिक की चिट्टी


एक सैनिक की चिट्टी आई आज उसके गाँव में,

जैसे धुप उजाला लेके पहुँच गई वो छांव में!
माँ ने दौड़ के ले ली चिट्टी,

जब की नहीं थी पढ़ीलिखी,
बोली कोई पढ़ के सुनाओ बेटा तो नहीं है दुखी,
बचपन में जब पड़ता था जरा से गिले बिस्तर में,
माँ गिले में सो जाती थी उस बच्चे के चक्कर में!
जाने कितनी ठंडक होगी उस बर्फीली घाटी में,
जाने कैसे सोता होगा लाल मेरा वो माटी में!
इतनी जल्दी चला गया वो दे न सकी कुछ भी उसको,
बस खडी देखती रही एकटक उसको,
तेरा कुशलता जान में लेती,
मन दिल को समझता है
जब तेरे हिस्से का खाना रोज़ रोज़ बच जाता है
सारा गाँव हाल युद्घ का जब हमको बतलाता है,
तेरी बढ़ाई सुन सुन के सीना चौडा हो जाता है
पढ़ने को जब चिट्टी खोली,
गम का कोई तूफान चला
ऐसी खबर लिखी थी उसमे
उसको पड़ता कौन भला,
सब के चहरे धुँआ धुँआ थे
जैसे दिल हो कोई जला!
तभी अचानक एक पडौसन ने उसको बतलाया,
चीख उठी वो ममता पागल हाल ने था उसको बहकाया,
कुछ नहीं समझ पाई वो बहीन बहुत छोटी थी
राखी उसने खुद ही बनाई और बक्से में छिपा दिया,
बोली जब पहना दूंगी कितने खुश होंगे भैया,
उसकी ये सारी बाते उसकी गुडिया से ही होती थी!
उसे देखा वो बूढी माँ फूट फूट के रोटी थी,
सोचती थी कैसे कह दूं तेरे सपने कभी नहीं सँवर पाएंगे
अब तुझसे राखी बंधवाने, तेरे भैया कभी नहीं आयेंगे
तेरे भैया कभी नहीं आयेंगे !
तेरे भैया कभी नहीं

Gram Sabha Ramgarh


With Ajay Chautala at MHD School, Odhan

Ajay Chautala at MHD School Odhan

Pari (Aug 2012)





TRASCON2012 (Chandigarh)

TRASCON 2012 at Chandigarh with John William(USA) and Zenith Sara(Singapore)

My Self (Vinod Suthar)


Laal Kila
Laal Kila Oct 2012


My Childhood Pictures

with my Sister And her Friend

Thursday, October 11, 2012

तो क्या पाओगी................


प्यार मुझ से जो किया तो क्या पाओगी
मेरे हालात की आंधी में, बिखर जाओगी

रंज और दर्द की बस्ती का, मैं बाशिंदा हूँ
ये तो बस मैं हूँ, के इस हाल में भी ज़िंदा हूँ
ख्वाब क्यों देखू, कल जिस पे मैं शरमिंदा हूँ
मैं जो शरमिंदा हुआ, तुम भी तो शरमाओगी

क्यों मेरे साथ कोई और परेशान रहे
मेरी दुनियाँ हैं जो वीरान तो वीरान रहे
जिन्दगी का ये सफ़र तुम पे तो आसान रहे
हमसफ़र मुझ को बनाओगी तो पछाताओगी

एक मैं क्या अभी आयेंगे दीवाने कितने
अभी गुन्जेंगे मोहब्बत के तराने कितने
जिन्दगी तुम को सुनाएगी फ़साने कितने
क्यों समझती हो मुझे भूल नहीं पाओगी

तुमने दिल की बात कह दी


तुमने दिल की बात कह दी, आज ये अच्छा हुआ,
हम तुम्हें अपना समझते थे, बढा धोखा हुआ,
.......

जब भी हमने कुछ कहा, उसका असर उल्टा हुआ,
आप शायद भूलते है, बारहा ऎसा हुआ,
 .......

आपकी आंखों में ये आंसू कहाँ से आ गये,
हम तो दिवाने है लेकिन आप को ये क्या हुआ,
....... 

अब किसी से क्या कहें इकबाल अपनी दास्तां,
बस खुदा का शुक्र है जो भी हुआ अच्छा हुआ,

My School's Memory

With Krishna Kumar And My Sir Sh. Ashok Kumar And Mange Ram JI

High School, Rattkhera with RajPal

Primary School HT Sh RamPratap JI

Mansoori Tour with AniMax Pharma (2008)



हरियाणा स्टेट


औरजिनल नही फोटो स्टेट दयूँगा,
दिल कभी भी ले लिए सस्ते रेट दयूँगा|

शाहजहाँ नै तो बस ताजमहल दिया था,
तु मर मेरे खातिर तूझे मै इड़िया गेट दयूँगा|

शक नही करूगा तेरी किसी बात पर,
बे-झिझक बोल झुठ सब लपेट दयुँगा|

दो पल तो बैठ तु मेरे पास कभी,
वहम तेरे मन के सब मेट दयूँगा|

आने दे इस बार वेलनटाईन ड़े को,
मै तुझे गिफ्ट मे हरियाणा स्टेट दयूँगा |