Monday, December 10, 2012

खुश रहने का सूत्र

माफ कीजिएगा, आप खुश होना ही नहीं चाहते. आपको तो बस चिकचिक-किचकिच करना है. क्या कहा! आप खुश होना चाहते हैं. मगर कैसे? आपके 'कैसे' का उत्तर मैं दिए देता हूं. ऐसा सूत्र देता हूं कि मन प्रसन्न और आप सन्न रह जाएंगे. आपको खुश रहने के लिए ज्यादा कुछ नहीं करना है. बस अपने सोचने के कोण को थोड़ा दायें-बायें, ऊपर-नीचे कर लें. सिंपल है! चलिए, विस्तार से समझाता हूं.
मान लीजिए-आपकी बत्ती गुल हो गई...जी, कहने का मतलब था आपके घर की. और प्रायः जाती है. आप खीझते क्यों है? आप यह सोचिए कि बिजली के जाने से बिजली का बिल कम हो गया. आप कुछ आध्यात्मिक टाइप भी सोच सकते हैं कि चलो आज अंधेरे में स्वयं से साक्षात्कार किया जाए. इस तरह से न जाने कितने तरीके से सोच कर आप बार-बार बिजली जाने से पैदा होने वाली झुंझलाहट से बच सकते हैं.
कुछ और उदाहरण पेश हैं, खुश रहना चाहते हैं, तो कृपया इन्हें भी आजमाकर देखें.
अगर सरकारी नौकरी नहीं मिली तो आप सोचिए कि आप काहिल नहीं हैं. अगर नौकरी प्राइवेट कर रहे हैं तो सोचिए कि आप बेरोजगार नहीं हैं. अगर आप बेरोजगार हैं तो आप सोचिए कि बेगार करने से बच गए. अगर आप बेगार कर रहे हैं तो सोचिए कि आप भूखे मरने से बच गए. अगर आप भूखे मर रहे हैं तो.... तो सोचिए कि आप अकेले नहीं मर रहे इस देश में.
पेट्रोल के दाम बढे़, तो सोचिए कि डीजल के नहीं बढ़े. अगर डीजल के दाम बढ़ जाएं तो सोचिए कि सीएनजी के नहीं बढे़. अगर उसका भी बढ़ जाए तो सोचिए कि साइकिल के दाम तो नहीं बढे़ हैं. अगर साइकिल के दाम बढ़ गए तो सोचिए कि पैदल चलना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है.
बाबू न सुने, तो सोचिए कि ऊंचा सुनता है. अधिकारी न सुने, तो सोचिए कि बहरा है. सरकार न सुने, तो सोचिए उसके कान ही नहीं. नहीं तो आप यह भी सोच सकते हैं कि आपकी आवाज में दम नहीं.  कहने का मतलब यह है कि जिस सोच से या जैसे सोचने से आप खुश हों, वही सोचिए.
अब जो उदाहरण आपके सामने रखने जा रहा हूं, हो सकता है आपको पंसद न आए. यह भी हो सकता है कि आपको तो बहुत पसंद आए, मगर आपकी धर्मपत्नी को कतई पसंद न आए.
अग्रिम माफी के साथ प्रस्तुत है वह उदाहरण- रोटी बनाते वक्त अगर श्रीमती की उंगलियां जल जाए, तो आप यह सोच कर खुश हो सकते हैं कि चलो सिलेंडर नहीं फटा.
तो मित्रो! अपने सोचने के कोण को थोड़ा यहां-वहां खिसकाने का मतलब आप बखूबी समझ गए होंगे. यानी खुश रहना है, तो खुशफहमियां पालें. गलतफहमियों का सहारा लेना छोडें. जब भी किसी विशाल समस्या से साबका पड़े, उसके सामने अपने आप बौने हो जाएं. अपने देश के फलक पर कित्ती समस्याएं कित्ते भी बुरे तरीके से मुंह चिढ़ाएं, आप मुंह बाए देखते रहें. हर हाल में अपने को बहलाइए जितना बहला सकते हैं. बुरा मत मानिएगा, वर्षों से आप यही तो कर रहे हैं. अरे! अरे! आप तो सचमुच बुरा मान गए. सुनिए तो! अच्छा एक बात बताइए, अगर आपने सचमुच समस्या का समाधान, कारण का निदान, स्थितियां बदलनी चाही होती तो आज जो समस्याएं जितनी बुरी तरह से आपको मुंह चिढ़ा रही हैं, क्या वे इतनी बुरी तरह से मुंह चिढ़ाने की हिम्मत करतीं? इस बार जरा 180 डिग्री वाला जवाब यानी सीधा जवाब दिल पर हाथ रख कर दीजिए तो!

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