Saturday, March 3, 2018

अवनि जी, बाइसन-21 की बधाई, आप हम सबकी आदर्श हैं।

अवनि जी ने कई अवधारणाओं को निरस्त करते हुए बाइसन-21 फ़ाइटर प्लेन को अकेले उड़ाया। अवनि जी, भावना और मोहना जी के साथ उन तीन फ़ाइटर पायलट्स में से एक हैं जिन्हें भारतीय वायु सेना से इसकी ट्रेनिंग मिली। बाकी दो को भी मौक़ा मिलेगा जल्द ही।
ये शुरुआत है, कॉम्बैट के कई क्षेत्र महिलाओं के लिए उतने सहज नहीं हैं जितने पुरुषों के लिए, लेकिन कई जगह उनका होना जरूरी है। स्त्रियों ने पहले भी युद्ध लड़े हैं, कबीलों की रक्षा की है, और आज भी करेंगी। ये भी कहना ज़ायज है कि पहले उनके अनुसार वैसा माहौल तैयार हो। आप कुछ नया करते हैं, जो पहले किसी भी कारण से न हो रहा हो, तो आपको सूरत सुधारनी होती है। ये बात ऐसी नहीं है कि कुछ असाधारण हुआ है। नहीं। महिलाएँ हवाई जहाज उड़ाती रही हैं, और ट्रेनिंग मिलने से फ़ाइटर भी उड़ाएँगी और बम भी गिराएँगीं। समय और परिस्थितियाँ उन्हें उन जगहों पर होने से रोकती रहीं जहाँ वो हो सकती थीं, लेकिन प्राथमिक तौर पर मर्दों को वो करने को मिला। ये एक सत्य है कि बच्चों की देखभाल के लिए दूध माता ही पिलाएगी, पुरुष बोतल ही पकड़ सकते हैं। साथ ही समानता के नाम पर आप बच्चे की परवरिश नहीं खराब कर सकते। और भी कई काम हैं जो उसी तरह से स्त्री बेहतर कर सकती है, जैसे कई काम पुरुष। बराबरी का ये मतलब नहीं होता कि एक एकड़ खेत में महिला भी कुदाल चलाए, और पुरुष भी। 
बराबरी का मतलब है कि हर व्यक्ति को बराबरी का हक़ मिले, अवसर मिलें। अगर कोई महिला वेट लिफ़्टर बनना चाहती हैं तो उसे वो माहौल दिया जाय, ये न कहा जाय कि तुम बच्चे पैदा करो और दूध पिलाओ। बच्चे पैदा करके जो पाल रही हैं, वो तो किसी भी प्रकार से किसी से भी कमतर नहीं हैं। ये उनका निजी चुनाव है, जैसे आपका चुनाव मेरा ये पोस्ट पढ़ना। इतना ही है।
महिलाएँ भी गोली चला सकती हैं, बम बरसा सकती हैं, और बच्चों को प्यार कर सकती हैं, जैसे एक पुरुष करता है। पहले शारीरिक संरचना के कारण, सामाजिक मान्यताओं और परिस्थितियों के कारण भी महिलाओं को एक सीमित दायरे में रखा जाता रही। पीरियड्स के लिए उतने बेहतर साधन नहीं थे, तो कई जगह इस कारण उन्हें वहाँ होने से रोका गया। आप युद्ध में इसको कैसे क़ाबू में करेंगे? अब साधन उपलब्ध हैं, तो वो इन्सास लेकर भी कूदेगी किसी दिन सीमा पर। समाजिक परिस्थितियों की बात करें तो हमें ये मानना चाहिए कि भले वो गलत रहे हों, पर वो थे। इस कारण भी महिलाओं को देर लग गई कई जगहों पर। 
मुझे तो बहुत खुशी होती है ऐसे मौक़ों पर कि एक जगह और आई। बस दो-चार बम और मार देती पाकिस्तान पर तो मज़ा आ जाता। लेकिन अभी तो युवा हैं, ऐसे मौक़े ज़रूर मिलेंगे। वैसे युद्ध न हो तो बेहतर है लेकिन एकाध सर्जिकल स्ट्राइक में ही चली जाएँ तो क्या बुरा है! 
तीनों बहनों को सलाम, आपको एक एक्सट्रा! राफ़ेल आ जाए तो उसको उड़ाइएगा, तब हम आप तीनों का पोस्टर रूम में लगा लेंगे।

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