Saturday, April 2, 2016

हर बिछड़ना ,बिछड़ना नहीं ...

वो अब शायद दोबारा कभी नहीं मिलेगी !

डॉक्टर के क्लीनिक पर मेरे साथ उसकी माँ भी अपनी बारी का इंतज़ार कर रही थी ! वो लाल रंग की एक सुन्दर फ्रिल वाली फ्रॉक के साथ लाल ऊन के फ़ीतेदार जूते पहने एक छह माह की बहुत प्यारी बच्ची थी! पांच दस मिनिट उसे पुचकारने से वो मुस्कुराने लग गयी थी! फिर जब उसे गोद में लेने को हाथ बढ़ाया तो वह दोनों हाथ फैलाकर मेरी गोद में लपक आई! अगले बीस मिनिट तक हम खूब हंसे, खिलखिलाए! उसकी माँ उसे मेरे पास ही छोड़कर डॉक्टर को दिखाने चली गयी! वो अपनी उजली चमकदार आँखों से मुझे देखती और मैं गुदगुदी करने के लिए उंगलियां उसकी ओर बढ़ाती और वो ज़ोर से खिलखिला उठती! हम दोनों एक दूसरे के साथ खुश थे! उसकी माँ ने बाहर आकर उसे गोद में लिया और जाने लगी! मैंने उसे टाटा किया और वो अपने दोनों हाथ फैलाकर मेरी गोद में आने के लिए लगभग पूरी लटक गयी! वो मचलती रही और कार तक जाते जाते वो दोनों हाथ फैलाए मेरी गोद में आना चाह रही थी! एक पल को ऐसा लगा जैसे वो मुझे बहुत अच्छे से जानती है!

खैर उसे जाना था ..वो चली गयी!

उसके जाने के बाद न जाने कितने चेहरे आँखों के सामने से घूम गये जो जीवन के किसी न किसी मोड़ पर मिले थे फिर कभी न मिलने के लिए! उन्हें रुकने की ज़रुरत भी न थी.. चंद मिनिटों, घंटों या दिनों में वो अपना काम बखूबी कर गए थे! इनमे से कई हमें बहुत कुछ दे जाते हैं अपनी कहानियों,  अनुभवों की शक्ल में और कई हमसे कुछ ले जाते हैं! ऐसे लोगों का मिलना शायद हमें अन्दर से समृद्ध करने के लिए होता है! तभी तो वो चेहरे कभी न भूल सके !

शाजापुर की छोटी सी ओना, मोना ! तीन साल और एक साल की ऑफिस के आस पास फुदकती दो बहने!  जिनकी सुबह से शाम तक हमारे ऑफिस के आस पास कटा करती थीं! अब बहुत बड़ी हो गयी होंगी! ढूँढने से मिल भी जाएंगी ये वो मोना न होंगी! पापा के पेट पर बैठकर चावल खाने वाली छुटकी सी मोना अब कभी नहीं मिलेगी! शायद जिन्हें कभी नहीं मिलना होता वो जाने से पहले हमारे दिल में सदा के लिए बस जाया करते हैं! ऐसे प्यारे लोगों का जीवन में दोबारा न तो इंतज़ार होता है,  न फिर से मिलने की ख्वाहिश और न उनके जाने का दुःख! ये बस आते हैं क्योंकि इन्हें मिलना होता है और चले जाते हैं!

नेपाल  की आई सरला आंटी, मॉर्निंग वाक पर मिला एक बच्चा जिसने उसकी साइकल की चेन चढाने के बदले मुझे आपनी साइकल पर बैठाकर मंजिल तक छोड़ने की पेशकश की थी,  ट्रेन के सफ़र में मिली एक लड़की जिसने मुझे अपना राज़दार बनाया था, एक सेमीनार में मिला वो सपनो में खोया नौजवान जिससे मिलकर एहसास हुआ कि इंफेचुएशन पर केवल टीनएज का हक़ नहीं है! एक और ट्रेन यात्रा में मिले वो एल आई सी वाले अंकल जिन्होंने अपने पिता के लिए लिखी एक कविता सुनाई थी और फिर रो पड़ी थे! मैं चंडीगढ़ उतर गयी था और वो कालका  चले गए थे! उनकी कविता की आखिरी लाइन थी..

"पिता का गुस्सा दरअसल आधी चिंता और आधा प्रेम होता है
पिता तो सिर्फ माफ़ करना जानते हैं"

क्या एक पीपल का पेड़ भी उस चिड़िया को याद करता होगा जो दूर सायबेरिया से चलकर आते वक्त दो घडी उसकी शाख पर बैठी थी और जाने कितनी कहानियाँ उस की शाखों पर बाँध कर चली गयी थी! वृक्षों के पास अनगिनत कहानियां होती हैं, ये चिड़ियाएँ ही हैं जो उन्हें समृद्ध बनाती हैं!


ऐसे लोग कभी बिछड़ते नहीं ...वे केवल मिलते हैं !

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