स्कूल के आस पास चारों ओर खुला मैदान है और बीच-बीच में आठ-दस पीपल और बरगद के
छायादार पेड़ों के नीचे किसी न किसी की याद में बनाए टियाले फुर्सत में रहने वालों
के स्थाई ठीये हैं। किसी कोने पर ताश के पत्ते बाजियों में पीटे फैंटे जा रहे हैं
तो दूसरे पर भंगेड़ी-नशेड़ी नशे में दम साध रहे हैं। कुछ टियालो के ऊपर पानी के
कोरे मटके भरे हैं। यहां से स्कूली बच्चे व राहगीर आते-जाते प्यास बुझाते हैं।
इन्हीं पेड़ों के दूसरी तरफ पक्की सड़क है और सड़क के पार निजी भूमि पर
इक्का-दुक्का दुकानें। पीपल पेड़ों की शृंखला के पीछे एक तरफ शिव मंदिर और दूसरी
तरफ खोखे व अस्थाई दुकानें हैं जो दिन ढलते ही मयखानों में तबदील हो जाती हैं।
चालीस के आस-पास आवारा गायें है जो दिनभर जुगाली करते हुए सुस्ताती है और रात को
लोगों की फसलें तबाह करती है। आसपास के कई गांवों की खबर यहां तुरंत मिल जाती है।
लोग इस स्थान को संध्याबाड़ी कहते हैं जब कि रौनक दिनभर रहती हैं।
आज संध्याबाड़ी के सबसे बडे टियाले पर बरगद के पेड़ के नीचे एक साधु शांत
चित्त ध्यान मुद्रा में बैठा है। लोग आ-जा रहे हैं। जुआरी उसी टियाले के दूसरे
हिस्से में पत्ते फेंट रहे हैं। पता नहीं ये साधु कब मांगने शुरू हो जाए इसीलिए
देखकर भी सभी अनदेखा कर रहे हैं। शाम को मयखानों में रौनक बढ़ रही है मगर साधु
शांतचित ध्यान मुद्रा में बैठा है। दूसरे दिन भी स्थिति यथावत बनी रही मगर किसी ने
साधु से वार्तालाप नहीं किया। तीसरे दिन नहा धोकर शिव मंदिर में माथा टेक कर साधु
ने फिर टियाले पर आसन जमा लिया। उत्सुकता सभी में है… बिना खाए पिए ये साधु यहां क्यूं बैठा है…? इसी उत्सुकतावश कुछ
गंजेडी भंगेडी आकर साधु के पास बैठ गए। जय हो महाराज…! साधु ने बड़ी ही विनम्रता से दोनों हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया। थोड़ी देर बाद
किसी ने पूछ ही लिया बाबा जी परसों से यहां विराजमान हैं कुछ खाया पिया क्या…? साधु ने न की मुद्रा में सिर हिलाया… तो कुछ आस-पास से
मांग क्यों नहीं लेते…? गर्दन हिलाते हुए साधु बोला
रहिमन वे नर मर गए जो कहुं मांगन जाएं
उनसे पहले वे मुये जिन मुख निकसत नाहीं
शिवजी को सब की चिंता है, जब शिव कृपा होगी
यही कोई न कोई दे जाएगा। शाम को मंदिर के पुजारी प्रसाद बांटते हुए साधु को भी दे
गए, जाते-जाते एक अर्ध निवेदन भी कर गए… आप चाहें तो मंदिर में तीन दिनों के लिए ठहर सकते है… भोजन की व्यवस्था हो जाएगी। साधु ने शिव ओम की ध्वनि के साथ प्रसाद ग्रहण कर
कमंडल में रख जल पिया और ध्यान मुद्रा में लीन हो गए।
अब गांव वाले देखने आने लगे… क्या प्रतापी साधु
है वरना आजकल के बाबा तो पाखंडी हैं। यह बात कई गांवों में फैल गई। लोग बाबाजी के
लिए सुबह-शाम खाना भेज देते। दिन में फलों का ढेर लग जाता तो बाबा जी बच्चों में
बांट देते। चढ़ावा ज्यादा चढ़ने लगा तो भंगेड़ी और स्कूल के बच्चों में भी बंटने
लगा। बाबा जी दोपहर को प्रवचन देने लगे या कहिए ज्ञान की गंगा बहने लगी। फिर एक
दिन बाबा जी ने अपने यहां आने का प्रयोजन बताया कहा शिवजी की इच्छा है और काली का
निर्देश है जहां शिव स्वयं प्रकट होंगे। शिवम… शिवम… कीर्ति चहुं ओर फैल गई। फिर एक सुबह फूलमालाओं से सजी दो गज जमीन पर
पूजा-अर्चना के साथ दूध लस्सी जल वेल पत्र चढ़ने लगा। फल और मिठाइयों के ढेर लगने
लगे। रुपए चढ़ते तो बाबाजी मस्ती में झूमते हुए किसी भी कन्या की झोली में डाल
देते… जा बच्चा तेरा कल्याण हो। साधु हूं स्वादु नहीं…
पैसों का मैं क्या करूंगा…. बोलो शिवम शिवम… बाबाजी नारा लगाते स्वयंभू … सारे सुर में सुर
मिलाते प्रकट हो… चेले प्रकट होने लगे लूले-लंगड़े… कुछ हट्टे-कट्टे श्वेत वस्त्रधारी। सब के सब अभीभूत सबकी अपनी-अपनी कथा। किसी
को बाबा अपने तप के बल पर यमलोक से वापस लाए थे तो किसी की नजर वापस लाए थे। कोई
अपना सर्वस्व लुटा चुका था कोई सर्वस्व लुटाकर वापस पाया गया था। बस एक ही शिकायत
सभी की जुबान पर थी… बाबाजी समाज सेवा के लिए शिव की आज्ञा से बिना बताए
गायब हो जाते हैं। हमारा तो एक ही मकसद है बाबाजी की सेवा में जीवन समर्पण। चेलों
के बढ़ने के साथ-साथ तंबू भी बढ़ते गए। एक कॉलोनी आबाद हो गई। सूर्यास्त के बाद
तथा सूर्योदय से पहले इस कालोनी में प्रवेश वर्जित था।
छोटी-सी आरती महाआरती मे तबदील हो गई। लाखों भक्तों का रेला रोज आ-जा रहा था
बाबाजी हर रोज 4-5 लाख रुपए दीन-हीनों में बांट देते। चढ़ावा 40 और 50 लाख प्रतिदिन पहुंच गया। लोगों का मेला लग गया गाड़ियों से मैदान पर गया।
अस्थाई दुकानों की पूरी बस्ती आबाद हो गई। सारा माहौल भक्तिमय हो गया। मयखाने बंद
हो गए। माहौल के साथ-साथ गांव की तकदीर भी बदल गई। कुछ लोग तो इसी आस में दिन-रात
पड़े रहते की कब बाबा नोटों की बरसात से उन्हें भी मालामाल कर दें। पूरे जनपद में
मुनादी करवाई गई। स्वयंभू शिवलिंग धरती का सीना फाड़ कर प्रकट होगे। नए ज्योतिर्लिंग
की स्थापना होगी। फूलों से सजे कुंड पर हर वक्त धाराप्रवाह दूध लस्सी बहने लगी।
जूते-चप्पल बेल्ट पर्स रखने के लांकर वाले चांदी कूटने लगे। गांव की औरतें
घड़े भर-भर कर पानी बेचने लगी। गौ सेवा के लिए मुट्ठीभर घास सौ-सौ रुपए में बिकने
लगा। बाबा की कृपा से गांव वाले मालामाल थे। गायों को वही पर बैठे बिठाए चारा मिल
रहा था अतः वह अब फसलों को नुकसान नहीं पहुंचा रही थी। पार्किंग के नाम पर खाली
जगह से लाखों कमाए जा रहे थे। फिर घोषणा हुई एक सौ आठ दिनों में स्वयंभू पूर्णतया
बाहर आ जाएंगे। और फिर चमत्कार हो गया। धरती का सीना फाड़कर स्वयंभू शिवलिंग के
दर्शन होने लगे। हर रोज शिवलिंग थोड़ा-थोड़ा ऊपर आने लगा। खबरिया चैनल पल-पल की
कवरेज दिखा रहे हैं। संदेह और आशंकाएं भी व्यक्त की जा रही है। लोगों की श्रद्धा
विज्ञान पर भारी पड़ रही है। भक्तों का रेला…
नोटों की बरसात थमने का नाम नहीं ले रही। भंडारे-जगराते कीर्तन दिन-रात शुरू
हो गए। बैंक वाले भी रोजाना इतना कैश लेने के लिए मना कर रहे हैं। हर दिन कैश वैन
अब बड़े शहर जा रही है। लोगों की श्रद्धा जय-जयकारों के उद्घोष… हर कोई दिल खोलकर दान कर रहा है। लोग आगंतुकों की सेवा में जुटे हैं। इतनी
खुली जगह पर भी तिल धरने की जगह नहीं बची है। नेता अभिनेता और व्यापारिक घरानों की
आवाजाही अब बढ़ गई है। सुरक्षा के लिए पुलिस बल तैनात। आंतरिक सुरक्षा का जिम्मा
बाबाजी के विश्वसनीय चेले उठा रहे हैं। एक और घोषणा की गई। सावन महीने के प्रथम
सोमवार को यह ज्योतिर्लिंग जनता को समर्पित कर दिया जाएगा। यहां एक भव्य मंदिर का
निर्माण होगा। उधर झूले वाले बाबा आकर्षण और श्रद्धा का केंद्र बने हुए है। जिन
विवाह योग्य कन्याओं को वर नहीं मिल रहे वह झूले वाले बाबा से आशीर्वाद लें… शीघ्र विवाह होगा… ऐसा बाबा जी का मानना है। झूले वाले बाबा की मनोहारी
छवि युवाओं के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। सिर पर मोर मुकुट फूलों का ताज, गले में विविध रंगों की फूल माला और फूलमालाओं से जड़ा झूला जिसके ऊपर बाबाजी
लगातार झूलते रहते है। उन्होंने प्रण लिया हे कि वह जमीन पर कदम नहीं रखेंगे। संध्याबाड़ी
गांव से शहर नजर आ रही है। दीन-दुखियों की कतारें लगी है। पंडाल भरे हैं… बाबा जी ने एक बार फिर घोषणा की शिवलिंग जब पूर्णतया बाहर आ जाएंगे तो उस की
स्थापना के बाद ही भक्तों की समस्याओं का निदान होगा। भक्तों का इंतजार खत्म हुआ।
भक्त बड़ी बेसब्री से प्रथम सोमवार का इंतजार कर रहे थे। रविवार को 51 गाड़ियों में बैठकर बाबाजी और उनके चेले हरिद्वार से रुद्राभिषेक के लिए
गंगाजल लाने निकले। लोगों ने हर्षोल्लास के साथ बैंड-बाजे बजाते हुए उन्हें
हरिद्वार के लिए रवाना किया। बाबाजी ने जाते समय अपने एक स्थानीय चेले को स्वयंभू
के पास हर पल हाजिर रहने के निर्देश दिए तथा ताकीद की कि जब तक वह गंगाजल लेकर
वापस नहीं आते तब तक स्वयंभू प्रकट हों… का उद्घोष जारी
रखें। सूर्योदय से पहले ही लौटकर वह गंगा जल से रुद्राभिषेक कर स्वयंभू की स्थापना
के बाद आम जनता को समर्पित करेंगे। सन्ध्याबॉड़ी में आज की रात शायद ही कोई सोया
होगा। सूर्योदय होने वाला मगर बाबा जी और उनके साथी नहीं लौटे लोगों में कानाफूसी
हो रही है। दिन चढ़ आया भजन मंडलियों का उत्साह कुछ ठंडा पड़ गया मगर चर्चाएं गर्म
होने लगीं… कहीं कुछ अनहोनी तो नहीं हो गई। अब तो सूर्य भगवान भी
सिर पर चढ़ आए हैं। खबरिया चैनलों के पत्रकार भी कई कयास लगाने जुट गए हैं। आखिर
क्यूं नहीं लौटे बाबा… और उनके चेले। दोपहर तक आलम यह है कि बिन दूल्हे की
बारात आखिर जाए कहां… बाबा जी और उनके चेलों का सही-सही अता-पता तो किसी के
पास नहीं है, न ही कोई मोबाइल नंबर। दोपहर तक पता चला की स्थानीय
युवाओं की एक टीम जो बाबाजी के दल के साथ गई थी उनकी गाड़ी बीच रास्ते में ही खराब
हो गई थी वह हरिद्वार पहुंच ही नहीं पाए तथा अब बस द्वारा संध्याबाड़ी लौट रही है।
इस खबर से पुलिस और प्रशासन के कान खड़े हो गए उन्होंने लोगों से अपील की कि वह संध्याबाडी से दूर चले जाएं। पुलिस ने सबसे पहले वीआईपी तंबुओं की जांच की तो पाया गया कि बिस्तर के अलावा कोई खास सामान न आया था, न गया। कुछ तंबुओं में विदेशी व महंगी शराब की खाली बोतलों के ढेर लगे थे। मुर्गे तथा मछली की हड्डियां यहां-वहां बिखरी पड़ी थी। बाबा के स्थानीय सेवकों ने बताया कि काली के कुछ चेले सूर्यास्त के बाद रोज शाम को काली मां को भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करते थे तथा उन्हें भी यह प्रसाद खूब दिया जाता रहा है। पुलिस ने घेराबंदी कर लोगों को अपने-अपने घर जाने का आदेश दे दिया मगर एक प्रश्न सब के मन पर बार-बार उछल कर बैठ जाता। शिवलिंग तो धरती का सीना फाड़कर प्रकट हुए ही है… ये तो झूठ नहीं। खबरिया चैनल हर एक तंबू में घूम-घूम कर बाबा के चेलों के कुकृत्य की निशानदेही कर रहे हैं। अंधभक्तों के उन्माद की खिल्ली उड़ा रहे हैं। पुलिस के जांच दल अब स्वयंभू की तरफ है। खबरिया चैनलों की कई आंखें स्वयंभू शिवलिंग पर जमी है। कुंड के ऊपर से पूजा-अर्चना सामग्री हटाई जा रही है। उधर बाबाजी चेलों के साथ अपना गैटअप बदल कर ट्रेन के वातानुकूलित डिब्बे में बैठकर ठहाके मार रहे हैं। अरे वो कौन बोला कि बाबाजी हमें यमलोक से वापस लाये है… हा हा हा यार… क्या फैंकू निकले तुम।
इस खबर से पुलिस और प्रशासन के कान खड़े हो गए उन्होंने लोगों से अपील की कि वह संध्याबाडी से दूर चले जाएं। पुलिस ने सबसे पहले वीआईपी तंबुओं की जांच की तो पाया गया कि बिस्तर के अलावा कोई खास सामान न आया था, न गया। कुछ तंबुओं में विदेशी व महंगी शराब की खाली बोतलों के ढेर लगे थे। मुर्गे तथा मछली की हड्डियां यहां-वहां बिखरी पड़ी थी। बाबा के स्थानीय सेवकों ने बताया कि काली के कुछ चेले सूर्यास्त के बाद रोज शाम को काली मां को भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करते थे तथा उन्हें भी यह प्रसाद खूब दिया जाता रहा है। पुलिस ने घेराबंदी कर लोगों को अपने-अपने घर जाने का आदेश दे दिया मगर एक प्रश्न सब के मन पर बार-बार उछल कर बैठ जाता। शिवलिंग तो धरती का सीना फाड़कर प्रकट हुए ही है… ये तो झूठ नहीं। खबरिया चैनल हर एक तंबू में घूम-घूम कर बाबा के चेलों के कुकृत्य की निशानदेही कर रहे हैं। अंधभक्तों के उन्माद की खिल्ली उड़ा रहे हैं। पुलिस के जांच दल अब स्वयंभू की तरफ है। खबरिया चैनलों की कई आंखें स्वयंभू शिवलिंग पर जमी है। कुंड के ऊपर से पूजा-अर्चना सामग्री हटाई जा रही है। उधर बाबाजी चेलों के साथ अपना गैटअप बदल कर ट्रेन के वातानुकूलित डिब्बे में बैठकर ठहाके मार रहे हैं। अरे वो कौन बोला कि बाबाजी हमें यमलोक से वापस लाये है… हा हा हा यार… क्या फैंकू निकले तुम।
अगले कार्यक्रम में तुम्हारा नाम फैंकूनंद महाराज रखेंगे। एक जोरदार ठहाका। हा… हा… हा… अच्छे कलाकार हो गए
हो तुम। और झूले वाले… तुम ने तो कमाल ही कर दिया धरती पर बिना पैर रखे
लाखों में खेल गए। अपनी शादी तो करवा लेता पहले… हा हा हा फिर एक
जोरदार ठहाका। भाई पिछले कार्यक्रम में हठ योगी बनकर बड़ी मुसीबत मोल ली थी… सबका मालिक एक… उंगली लगातार खड़ी रखने से बहुत पीड़ा भोगी। ऐसे दो-चार कार्यक्रम सफल निकल
जाए तो शादी भी कर लेंगे। उधर बाबा जी के एक और शिष्य हकलाये… भाई ऐसा कोई कार्यक्रम विदेश में भी रखें जरा मजा आ जाये…! अबे विदेश में ऐसी अंधभक्त श्रद्धा कहां… भूखे मरोगे। उधर
शिवलिंग को उठाकर पुलिस वाले ले गए खबरिया चैनल अभी भी जूम मार-मारकर चिल्ला रहे
हैं आखिर धरती का सीना फाड़कर कैसे प्रकट हुए स्वयंभू…? कुछ चैनल हरिद्वार तक गाड़ियों का पीछा कर आए। सहारनपुर रेलवे स्टेशन पर
पत्रकार चिल्ला रहे हैं यही वो जगह है यहां से बाबा अपना काफिला छोड़कर कोई ट्रेन
पकड़ लिए। दूसरे चैनल ने गाड़ियों को भेजने वाली ट्रांसपोर्ट कंपनी ढूंढ़ ली है।
चूना खैनी मलते हुए चालक बता रहे है… हम तो एडवांस मिलने
पर गए थे बुकिंग हरिद्वार की थी मगर एक-एक कर सभी लोग सहारनपुर पहुंचते-पहुंचते
उतर लिए। अगले दिल एक और चैनल हर आधे घंटे बाद प्रोमो में चिल्ला रहा है… आज खुलेगा स्वयंभू का रहस्य देखिए रात आठ बजे हमारे चैनल पर। लोगों ने बड़ी
उत्सुकता से देखा कुछ भेड़-बकरियां स्वयंभू के प्रकट होने की जगह पर चने चबा रही
थी। एक वैज्ञानिक बता रहा है… जैसे-जैसे शिवलिंग
पर दूध लस्सी और जल चढ़ाया जाता नीचे दबाये हुए चने फूलते और शिवलिंग ऊपर उठ जाता।
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