Monday, March 21, 2016

अफजल के बेटे को 95% अंक आते हैं तो सुर्खियां बनती हैं, मेरी बेटी अव्वल आती है तो कोई नहीं पूछता

अफजल पर देश में हल्ला हो रहा है। लेकिन जिन परिवारों का दोषी अफजल है उनके नाम तक किसी को याद नहीं है। शहीदों के परिवार सवाल करते हैं कि संसद पर हमले के दोषी अफजल के बेटे को 95% अंक आते हैं तो सुर्खियां बनती हैं, मेरी बेटी अव्वल आती है तो कोई नहीं पूछता? नेता JNU जाते हैं लेकिन हमसे मिलने कोई नहीं आता...हरियाणा और दिल्ली की सीमा पर मोहड़बंद गांव में शहीद विजेंद्र सिंह का घर है। उनकी पत्नी जयावती ने कहा कि संसद पर हमले में शहीद हुए लोगों के तो नाम तक किसी को याद नहीं। उन राजनेताओं को भी नहीं जिनकी जान शहीदों ने बचाई थी।दिल्ली पुलिस में थे विजेंद्र सिंहसंसद हमले के दौरान विजेंद्र सिंह संसद में ड्यूटी पर थे। जयावती ने बताया कि 13 दिसंबर 2001 की सुबह 12 बजे के आसपास उनकी बेटी ने जब टीवी पर देखा तो मुझे बताने आई। मैंने उसे जवाब दिया, अरे जहां तेरे पापा की ड्यूटी है वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता। उन्होंने बताया कि विजेंद्र के शहीद होने के बाद पांच बच्चों की जिम्मेदारी उनपर आ गई।उन्होंने बताया कि यहां बेटी का बाप कभी बेटी के ससुराल नहीं रुकता। लेकिन मेरे पिता दस सालों तक हमारे घर में रहे। हम बाप बेटी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहे। बच्चों को घर में बंद कर के जाना पड़ता। थक गए हम। उस पर भी जब अफजल की फांसी की बारी आई तो राजनीति करने लगे। हमने तो अपने मेडल तक लौटा दिए थे। वो कहते थे मेडल मत लौटाओ। अरे मेडल मतलब जीत, सम्मान। तो जब गुनहगार को फांसी नहीं दे रहे थे तो कैसा सम्मान।हर साल आती है सिर्फ चिट्ठीजयावती कहती हैं साल में सिर्फ एक चिट्‌ठी आती है। संसद के ऑफिस से। बोलते हैं 13 दिसंबर को आ जाओ और फूल चढ़ाकर श्रद्धांजलि दे दो। वो पिछले आठ सालों से आ रही चिट्‌टठियां निकालकर दिखाती भी हैं। बाकी दिनों में कोई उनकी खोज-खबर नहीं लेता।कमलेश कुमारी के पति अवधेश कुमार का कहना है कि ये कहानी किसी एक शहीद के परिवार की नहीं है। उन्होंने बताया कि हमले की दिन कमलेश संसद के गेट पर थी। दुश्मन की गोली की परवाह किए बिना उन्होंने गोलियों के बीच संसद का गेट बंद कर दिया था। उनके इस साहस के लिए उन्हें अशोक चक्र दिया गया था। ये सम्मान पाने वाली वो देश की इकलौती महिला सोल्जर हैं। अवधेश ने बताया कि उनकी दो बेटियां हैं। ज्योति और श्वेता। कमलेश चाहती थी हमारी बेटियों की पढ़ाई अच्छे से हो इसलिए हम दिल्ली में रहते थे। 'मेरी बेटियां भी अपनी मां की तरह बहादुर हैं। देश सेवा करना चाहती हैं। लोग जितनी बार अफजल और आजादी का नाम लेते हैं उतनी बार शहीदों का लेते तो हमें गर्व होता कि कोई याद तो करता है।' 'अफजल को ऐसे बनाया जैसे कारगिल वॉर जीतकर आया हो। घर में तलवार चला रहे हैं। चलो पाकिस्तान की बॉर्डर पर।' शहीद मातबर सिंह नेगी के बेटे गौतम नेगी ने कहा कि उन्होंने पिता की मौत से पहले कभी घर में बिजली का बिल भी नहीं भरा था। सारी जिम्मेदारी पापा ने निभाई थी। मातबर सिंह संसद की सिक्युरिटी में थे। अब गौतम उन्हीं की जगह नौकरी करता है। गौतम के मुताबिक, कोई शहीद होता है तो उसके घर एक दिन नेता जाते हैं। बाकी दिन परिवार उन नेताओं और सरकारी अधिकारियों के चक्कर काटता है। 'नेता जानते हैं वोट बैंक कन्हैया और अफजल हैं।'दिल्ली पुलिस में थे विजेंद्र सिंहसंसद हमले के दौरान विजेंद्र सिंह संसद में ड्यूटी पर थे। जयावती ने बताया कि 13 दिसंबर 2001 की सुबह 12 बजे के आसपास उनकी बेटी ने जब टीवी पर देखा तो मुझे बताने आई। मैंने उसे जवाब दिया, अरे जहां तेरे पापा की ड्यूटी है वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता। उन्होंने बताया कि विजेंद्र के शहीद होने के बाद पांच बच्चों की जिम्मेदारी उनपर आ गई।उन्होंने बताया कि यहां बेटी का बाप कभी बेटी के ससुराल नहीं रुकता। लेकिन मेरे पिता दस सालों तक हमारे घर में रहे। हम बाप बेटी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहे। बच्चों को घर में बंद कर के जाना पड़ता। थक गए हम। उस पर भी जब अफजल की फांसी की बारी आई तो राजनीति करने लगे। हमने तो अपने मेडल तक लौटा दिए थे। वो कहते थे मेडल मत लौटाओ। अरे मेडल मतलब जीत, सम्मान। तो जब गुनहगार को फांसी नहीं दे रहे थे तो कैसा सम्मान।हर साल आती है सिर्फ चिट्ठीजयावती कहती हैं साल में सिर्फ एक चिट्‌ठी आती है। संसद के ऑफिस से। बोलते हैं 13 दिसंबर को आ जाओ और फूल चढ़ाकर श्रद्धांजलि दे दो। वो पिछले आठ सालों से आ रही चिट्‌टठियां निकालकर दिखाती भी हैं। बाकी दिनों में कोई उनकी खोज-खबर नहीं लेता।कमलेश कुमारी के पति अवधेश कुमार का कहना है कि ये कहानी किसी एक शहीद के परिवार की नहीं है। उन्होंने बताया कि हमले की दिन कमलेश संसद के गेट पर थी। दुश्मन की गोली की परवाह किए बिना उन्होंने गोलियों के बीच संसद का गेट बंद कर दिया था। उनके इस साहस के लिए उन्हें अशोक चक्र दिया गया था। ये सम्मान पाने वाली वो देश की इकलौती महिला सोल्जर हैं। अवधेश ने बताया कि उनकी दो बेटियां हैं। ज्योति और श्वेता। कमलेश चाहती थी हमारी बेटियों की पढ़ाई अच्छे से हो इसलिए हम दिल्ली में रहते थे। 'मेरी बेटियां भी अपनी मां की तरह बहादुर हैं। देश सेवा करना चाहती हैं। लोग जितनी बार अफजल और आजादी का नाम लेते हैं उतनी बार शहीदों का लेते तो हमें गर्व होता कि कोई याद तो करता है।' 'अफजल को ऐसे बनाया जैसे कारगिल वॉर जीतकर आया हो। घर में तलवार चला रहे हैं। चलो पाकिस्तान की बॉर्डर पर।' शहीद मातबर सिंह नेगी के बेटे गौतम नेगी ने कहा कि उन्होंने पिता की मौत से पहले कभी घर में बिजली का बिल भी नहीं भरा था। सारी जिम्मेदारी पापा ने निभाई थी। मातबर सिंह संसद की सिक्युरिटी में थे। अब गौतम उन्हीं की जगह नौकरी करता है। गौतम के मुताबिक, कोई शहीद होता है तो उसके घर एक दिन नेता जाते हैं। बाकी दिन परिवार उन नेताओं और सरकारी अधिकारियों के चक्कर काटता है। 'नेता जानते हैं वोट बैंक कन्हैया और अफजल हैं।'दिल्ली पुलिस में थे विजेंद्र सिंहसंसद हमले के दौरान विजेंद्र सिंह संसद में ड्यूटी पर थे। जयावती ने बताया कि 13 दिसंबर 2001 की सुबह 12 बजे के आसपास उनकी बेटी ने जब टीवी पर देखा तो मुझे बताने आई। मैंने उसे जवाब दिया, अरे जहां तेरे पापा की ड्यूटी है वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता। उन्होंने बताया कि विजेंद्र के शहीद होने के बाद पांच बच्चों की जिम्मेदारी उनपर आ गई।उन्होंने बताया कि यहां बेटी का बाप कभी बेटी के ससुराल नहीं रुकता। लेकिन मेरे पिता दस सालों तक हमारे घर में रहे। हम बाप बेटी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहे। बच्चों को घर में बंद कर के जाना पड़ता। थक गए हम। उस पर भी जब अफजल की फांसी की बारी आई तो राजनीति करने लगे। हमने तो अपने मेडल तक लौटा दिए थे। वो कहते थे मेडल मत लौटाओ। अरे मेडल मतलब जीत, सम्मान। तो जब गुनहगार को फांसी नहीं दे रहे थे तो कैसा सम्मान।हर साल आती है सिर्फ चिट्ठीजयावती कहती हैं साल में सिर्फ एक चिट्‌ठी आती है। संसद के ऑफिस से। बोलते हैं 13 दिसंबर को आ जाओ और फूल चढ़ाकर श्रद्धांजलि दे दो। वो पिछले आठ सालों से आ रही चिट्‌टठियां निकालकर दिखाती भी हैं। बाकी दिनों में कोई उनकी खोज-खबर नहीं लेता।कमलेश कुमारी के पति अवधेश कुमार का कहना है कि ये कहानी किसी एक शहीद के परिवार की नहीं है। उन्होंने बताया कि हमले की दिन कमलेश संसद के गेट पर थी। दुश्मन की गोली की परवाह किए बिना उन्होंने गोलियों के बीच संसद का गेट बंद कर दिया था। उनके इस साहस के लिए उन्हें अशोक चक्र दिया गया था। ये सम्मान पाने वाली वो देश की इकलौती महिला सोल्जर हैं। अवधेश ने बताया कि उनकी दो बेटियां हैं। ज्योति और श्वेता। कमलेश चाहती थी हमारी बेटियों की पढ़ाई अच्छे से हो इसलिए हम दिल्ली में रहते थे। 'मेरी बेटियां भी अपनी मां की तरह बहादुर हैं। देश सेवा करना चाहती हैं। लोग जितनी बार अफजल और आजादी का नाम लेते हैं उतनी बार शहीदों का लेते तो हमें गर्व होता कि कोई याद तो करता है।' 'अफजल को ऐसे बनाया जैसे कारगिल वॉर जीतकर आया हो। घर में तलवार चला रहे हैं। चलो पाकिस्तान की बॉर्डर पर।' शहीद मातबर सिंह नेगी के बेटे गौतम नेगी ने कहा कि उन्होंने पिता की मौत से पहले कभी घर में बिजली का बिल भी नहीं भरा था। सारी जिम्मेदारी पापा ने निभाई थी। मातबर सिंह संसद की सिक्युरिटी में थे। अब गौतम उन्हीं की जगह नौकरी करता है। गौतम के मुताबिक, कोई शहीद होता है तो उसके घर एक दिन नेता जाते हैं। बाकी दिन परिवार उन नेताओं और सरकारी अधिकारियों के चक्कर काटता है। 'नेता जानते हैं वोट बैंक कन्हैया और अफजल हैं।'दिल्ली पुलिस में थे विजेंद्र सिंहसंसद हमले के दौरान विजेंद्र सिंह संसद में ड्यूटी पर थे। जयावती ने बताया कि 13 दिसंबर 2001 की सुबह 12 बजे के आसपास उनकी बेटी ने जब टीवी पर देखा तो मुझे बताने आई। मैंने उसे जवाब दिया, अरे जहां तेरे पापा की ड्यूटी है वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता। उन्होंने बताया कि विजेंद्र के शहीद होने के बाद पांच बच्चों की जिम्मेदारी उनपर आ गई।उन्होंने बताया कि यहां बेटी का बाप कभी बेटी के ससुराल नहीं रुकता। लेकिन मेरे पिता दस सालों तक हमारे घर में रहे। हम बाप बेटी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहे। बच्चों को घर में बंद कर के जाना पड़ता। थक गए हम। उस पर भी जब अफजल की फांसी की बारी आई तो राजनीति करने लगे। हमने तो अपने मेडल तक लौटा दिए थे। वो कहते थे मेडल मत लौटाओ। अरे मेडल मतलब जीत, सम्मान। तो जब गुनहगार को फांसी नहीं दे रहे थे तो कैसा सम्मान।हर साल आती है सिर्फ चिट्ठीजयावती कहती हैं साल में सिर्फ एक चिट्‌ठी आती है। संसद के ऑफिस से। बोलते हैं 13 दिसंबर को आ जाओ और फूल चढ़ाकर श्रद्धांजलि दे दो। वो पिछले आठ सालों से आ रही चिट्‌टठियां निकालकर दिखाती भी हैं। बाकी दिनों में कोई उनकी खोज-खबर नहीं लेता।कमलेश कुमारी के पति अवधेश कुमार का कहना है कि ये कहानी किसी एक शहीद के परिवार की नहीं है। उन्होंने बताया कि हमले की दिन कमलेश संसद के गेट पर थी। दुश्मन की गोली की परवाह किए बिना उन्होंने गोलियों के बीच संसद का गेट बंद कर दिया था। उनके इस साहस के लिए उन्हें अशोक चक्र दिया गया था। ये सम्मान पाने वाली वो देश की इकलौती महिला सोल्जर हैं। अवधेश ने बताया कि उनकी दो बेटियां हैं। ज्योति और श्वेता। कमलेश चाहती थी हमारी बेटियों की पढ़ाई अच्छे से हो इसलिए हम दिल्ली में रहते थे। 'मेरी बेटियां भी अपनी मां की तरह बहादुर हैं। देश सेवा करना चाहती हैं। लोग जितनी बार अफजल और आजादी का नाम लेते हैं उतनी बार शहीदों का लेते तो हमें गर्व होता कि कोई याद तो करता है।' 'अफजल को ऐसे बनाया जैसे कारगिल वॉर जीतकर आया हो। घर में तलवार चला रहे हैं। चलो पाकिस्तान की बॉर्डर पर।' शहीद मातबर सिंह नेगी के बेटे गौतम नेगी ने कहा कि उन्होंने पिता की मौत से पहले कभी घर में बिजली का बिल भी नहीं भरा था। सारी जिम्मेदारी पापा ने निभाई थी। मातबर सिंह संसद की सिक्युरिटी में थे। अब गौतम उन्हीं की जगह नौकरी करता है। गौतम के मुताबिक, कोई शहीद होता है तो उसके घर एक दिन नेता जाते हैं। बाकी दिन परिवार उन नेताओं और सरकारी अधिकारियों के चक्कर काटता है। 'नेता जानते हैं वोट बैंक कन्हैया और अफजल हैं।'दिल्ली पुलिस में थे विजेंद्र सिंहसंसद हमले के दौरान विजेंद्र सिंह संसद में ड्यूटी पर थे। जयावती ने बताया कि 13 दिसंबर 2001 की सुबह 12 बजे के आसपास उनकी बेटी ने जब टीवी पर देखा तो मुझे बताने आई। मैंने उसे जवाब दिया, अरे जहां तेरे पापा की ड्यूटी है वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता। उन्होंने बताया कि विजेंद्र के शहीद होने के बाद पांच बच्चों की जिम्मेदारी उनपर आ गई।उन्होंने बताया कि यहां बेटी का बाप कभी बेटी के ससुराल नहीं रुकता। लेकिन मेरे पिता दस सालों तक हमारे घर में रहे। हम बाप बेटी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहे। बच्चों को घर में बंद कर के जाना पड़ता। थक गए हम। उस पर भी जब अफजल की फांसी की बारी आई तो राजनीति करने लगे। हमने तो अपने मेडल तक लौटा दिए थे। वो कहते थे मेडल मत लौटाओ। अरे मेडल मतलब जीत, सम्मान। तो जब गुनहगार को फांसी नहीं दे रहे थे तो कैसा सम्मान।हर साल आती है सिर्फ चिट्ठीजयावती कहती हैं साल में सिर्फ एक चिट्‌ठी आती है। संसद के ऑफिस से। बोलते हैं 13 दिसंबर को आ जाओ और फूल चढ़ाकर श्रद्धांजलि दे दो। वो पिछले आठ सालों से आ रही चिट्‌टठियां निकालकर दिखाती भी हैं। बाकी दिनों में कोई उनकी खोज-खबर नहीं लेता।कमलेश कुमारी के पति अवधेश कुमार का कहना है कि ये कहानी किसी एक शहीद के परिवार की नहीं है। उन्होंने बताया कि हमले की दिन कमलेश संसद के गेट पर थी। दुश्मन की गोली की परवाह किए बिना उन्होंने गोलियों के बीच संसद का गेट बंद कर दिया था। उनके इस साहस के लिए उन्हें अशोक चक्र दिया गया था। ये सम्मान पाने वाली वो देश की इकलौती महिला सोल्जर हैं। अवधेश ने बताया कि उनकी दो बेटियां हैं। ज्योति और श्वेता। कमलेश चाहती थी हमारी बेटियों की पढ़ाई अच्छे से हो इसलिए हम दिल्ली में रहते थे। 'मेरी बेटियां भी अपनी मां की तरह बहादुर हैं। देश सेवा करना चाहती हैं। लोग जितनी बार अफजल और आजादी का नाम लेते हैं उतनी बार शहीदों का लेते तो हमें गर्व होता कि कोई याद तो करता है।' 'अफजल को ऐसे बनाया जैसे कारगिल वॉर जीतकर आया हो। घर में तलवार चला रहे हैं। चलो पाकिस्तान की बॉर्डर पर।' शहीद मातबर सिंह नेगी के बेटे गौतम नेगी ने कहा कि उन्होंने पिता की मौत से पहले कभी घर में बिजली का बिल भी नहीं भरा था। सारी जिम्मेदारी पापा ने निभाई थी। मातबर सिंह संसद की सिक्युरिटी में थे। अब गौतम उन्हीं की जगह नौकरी करता है। गौतम के मुताबिक, कोई शहीद होता है तो उसके घर एक दिन नेता जाते हैं। बाकी दिन परिवार उन नेताओं और सरकारी अधिकारियों के चक्कर काटता है। 'नेता जानते हैं वोट बैंक कन्हैया और अफजल हैं।'

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